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________________ ( 6 ) - सम्यग्दृष्टि के कार्यों में अन्तर होता है । सम्यग्दृष्टि की हरेक चेष्टा ही सद्भावना को लेकर होती है अतः वह पापापहारक होकर पुण्य वर्द्धक हुवा करती है किन्तु मिध्यादृष्टि को वही चेष्टा दुर्भावना को लिये हुये होने से पापमय होती है । वल्कि मिथ्याष्टि जीव एक वार के लिये त्याग करके निश्चेष्ट होकर निष्कर्मता की ओर भी आये तो भी वह पाप से मुक्त होकर धर्मात्मपन को नहीं प्राप्त हो पाता सो नीचे बताते हैंनाप्नोतिधर्महिरात्मतातस्त्यक्त्वापिपाया विषयानिहातः धर्मात्मवाविज्ञउपैतिवाय-त्यागातिगोऽपिक्षमताविगाह ४१ यदृच्छयान्तः करणहिजुष्टं ग्रीष्मेणनग्नत्वमितःसदुष्टः । कष्ट सहन्सभ्यतयैतिवास श्लाघ्यत्त्वमाप्नोतिगृहीतदास:४२ अर्थात्- एक आदमी ने जेठ के महीने में गर्मी के मारे घबरा कर अपने शरीर पर के तमाम कपड़े उतार कर फेंक दिये और नङ्गा बन गया तो कोई भी उसे अच्छा नहीं बताता, उलटा दुष्ट कहकर लोग उसका निरादर करतें हैं क्यो कि वह उसकी यहच्छावृत्ति है उसका मन उसके बिलकुल बशमें नही है। हांजो आदमी गृहस्थ होते हुये सभ्यता के नाते पर उस समय उस कड़ी उष्णता को सहन करते हुये भी कपड़े पहने रहता है उस की बड़ाई है उसी प्रकार मिध्यादृष्टि जीव अपने वहिरमपन से अगर इन बाहरी के विषय भोगों को त्यागकर द्रव्यलिङ्गी मुनि भी बनजाता है तो भी वह धर्मात्मा नही
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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