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________________ ॥श्री गौतम गुरु न्योनमः ॥ अथ श्री श्रावकना बार व्रतनी टीप प्रारभ्यते. ॥ दोहरा ॥ सदा सिद्ध नगवानके, चरण नमुं चित लाय%; श्रुतदेवीपुनी समरिये, पूजुं ताके पाय. ॥ १ ॥ करूं सुगम भाषा सही, बारह व्रत विस्तार; निन्न निन्न नेदे करी, नव्य जीव जपगार. ॥५॥ 'पंचाणु व्रत प्रथमते, तीन गुण व्रत जाण; शिक्षा व्रत चारु मिती, बारह व्रत जु वखाण ॥३॥ शास्त्र सुगुरु उपदेश सुनि, धारे व्रत शुज चाल; ता घरि जश सुख संपदा, होवे मंगल माल. ॥४॥ बुध उद्योत सागर गणी, अपनी मति अनुसार विधिश्रावकके व्रततणी, पीपलि निरधार. ॥५॥ त्यां प्रथम सम्यक्त्वरूप विखे.ते समकितना बेनेदबे, एक व्यवहार समकित अने बीजो निश्चय समकित. अंहीसम्यक्त्व शब्दनुं अर्थ लखेडे (तत्वार्थ श्रद्धानं सम्यक्त्वं ) तत्व एटले जे यथार्थ खरूप विज्ञान पूर्वक श्रद्धा तेने सम्यक्त कहीए, ते तत्व त्रण प्रकारचें . एक देव तत्व, बीजुं गुरु तत्व, त्रीजुं धर्म तत्व, अने वली ए त्रणे तत्वनी सदहणा एटले जे साची प्रतित तेना बेनेदजे. एक व्यवहारथी अने बीजी निश्चयथी तेमां प्रथम व्य वहारथी शुद्ध देव तत्वनी सदहणा देखाडे बे. 'एमां देवतो श्री अरिहंतजी जेमना अढारे दोष दय पाम्या जे. ते अढार दोषना नाम नीचे प्रमाणे . .
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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