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________________ फस्याहादथी अनुसरीने शुरू चारित्राचार पालनरूप प्रवहणे क रीने संसार समुष तरता, सकल आशंसा दोष त्यागी एक मुक्ति पद साध्य मन धरता, त्रिकरण शुझें एक विध श्रीजिनाज्ञानां प्रति पालक, विविध धर्मना प्रकाशक, त्रिविध रत्नत्रयीनाधारक, चतुर्वि ध कषायना जीपक, पंचविध शुजनावनाये युक्त थका पांच महान तना धुरंधर धोरी, बविध बकायना परम रदक, सप्तविध जय स्थानथी रहित, अष्टविध मदस्थानकना जीपक, नवविध ब्रह्मगु तिना धारक, दशविध यतिधर्म प्रतिपालवामां सावधान, एकाद शांग सूत्रना अर्थ विस्तारे पठन करवामां रसिक, इत्यादि उत्तरो त्तर अगणित गुण गणालंकृत गात्र, परम पात्र, परमोपकारी, अ ष्टादश सहस्रशीलांगरथधारी,नव कोटी विशुद्धप्रत्याख्यानचारी, अनियत नव कल्पविहारि, सडतालीश दोषरहित शुद्धाहार था हारी, जेनी परीक्षा कसोटीए कस्या जात्यवंत सोनानी परे अ धिक अधिक गुणना रंगधारी, शत्रु मित्र समचित्तदृष्टि, जे कुखि पू रक संबलथी नहीं अधिक वित्त, परमगुणी, परमदयाल, जगतबंधु, जगहितकारी, जारंग पंखीनी पेरे अप्रमत्तचारी, पृथ्वीनी पेरे सर्व सहन करनारा, मधुकरीवृत्तिनीपेरे मुधाजीवी,आकाशनीपेरे निरा धार, गतप्रतिबंधी,अंतरमा अने बाह्यमां, सुतातेमजागतां, दिवश मां तेम रात्रीमां, एकाकीमां तेम महोटी परखदामां जेमने एकजप वृत्तिबे. एवा मुनिराज नविक जीवोने संसारसमुजतारवाने जेमना चरण वडसफरी वहाण समान स्वपरोपकारी, एवा जना वख तमां पण पंदर कर्म नूमिमां सर्व मलीने बे हजार कोडी साधु व तें. तेमने हुं गुरुतत्व करी सर्दहुं, एमनी आज्ञा मारं, एमने पर मपात्र बुझिए पडिलाजु, एमनी क्रियानी अनुमोदना करूं,एवाशुद्ध साधु मारा गुरुत्व. इति व्यवहार शुक गुरुतत्व समाप्त.
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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