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________________ आत्मा के तीन रूप उनके लक्षण और कार्य [ ४७ से १९४ तक ] "आत्मा और परमात्मा की वस्तुत: एक ही सत्ता है । अद्वैतवाद और रूप का 'माया' के कारण ही परमात्मा में नाम are है । इस माया से छुटकारा पाना मानों आत्मा और परमात्मा की फिर एक बार एक ही सत्ता स्थापित करना है । आत्मा और परमात्मा एक ही शक्ति के दो भाग हैं, जिन्हें माया के परदे ने अलग कर दिया है । जव उपासना या ज्ञानार्जन पर माया नष्ट हो जाती है, तब दोनों भागों का पुनः एकीकरण हो जाता है । कवीर सा० इसी बात को इस प्रकार लिखते हैं : जल में कुंभ, कुंभ में जल है. बाहिर भीतर पानी । फुटा कुंभ जल जलहिं समाना. यह तत कथहु गियानी ॥ - डा. रामकुमार वर्मा ( कवीर का रहस्यवाद, पृष्ठ ८ )
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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