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________________ तीर्थभक्त, समाजभूषण सेठ भगवानदास जी शोभालाल जी का संक्षिप्त परिचय तारण समाज और समाजों को अपेक्षा एक छोटी सी समाज है, किन्तु छोटी सी समाज होते हुए भी आज उसने अन्य समाजों के बीच अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। उसकी अपनी संस्कृति है, अपनी परंपरा है, अपने धमस्थल और अपने शिक्षा के स्थान हैं। जंगल में मंगल नहीं होता, किंतु उसके जो अपने ताथ है - वे तीथे जहां कि तारण स्वामी का बचपन बीता, जहाँ उन्होंने जाति-पांति और ऊँच-नीच के भेदभाव को तेज कर, मानवता को समान रूप से अध्यात्मवाद का पाठ पढ़ाया और जहाँ की ऊँची ऊँची पहाड़ियों पर बैठकर उन्होंने घोर तपस्या कर अपने कर्मों की निर्जरा की, वे तीथे वास्तव में ही जंगल में मंगल करने वाले हैं। घनघोर जंगलों के बीच, उमड़ते हुए बादलों के नाचे, नाचते हुए मयूरों की पृष्ठभूमि में इन तीर्थक्षेत्रों में वास्तुकला का जो प्राचीन और अर्शचीन सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है, वह वास्तव में ही एक दर्शनीय वस्तु है, किन्तु इन सब विविधताओं का केन्द्रविन्दु कौन है, किसके कन्धों पर खड़ी होकर तारण समाज की यह संख्या हरी बनी है और पूरी तारण समाज की तसवीर के पंछे से ऐसा वह कौन व्यक्ति है जो उसमें से झाँक रहा है, और तमवीर को दोनों हाथों से पकड़े हुए जो गौरव के साथ यह कह रहा है कि यह तारगा समाज को तमचोर है; मुझे इसका गौरव है और अपने रहते यह तसवीर सदा मुमकगती ही रहेगी, ऐसा वह व्यक्ति है दूसरा कोई नहीं, केवल इम ग्रन्थ का प्रकाशक ही, दो भाइयों का एक वह जोड़ा जो हमें बरवम कलियुग की परिधि से बाहर खींच ले जाता है और उन भाइयों के जोड़ की याद दिलाता है जो सदा दो काया और एक प्राण होकर रहते थे । अगर किसी धार्मिक मेले में, किसी सभा में, किसी संस्था के अधिवेशन में और दरिद्रता से चीखती हुई नंगी और भूखो प्यासी मानवता की सेवा में, आपको कहीं भरत और राम से दो भाई दीख पढ़ें-कहीं आपको यह दीख पड़े कि छोटे बड़े का भेद छोड़कर, परहित के कार्य में कहीं दो इकाइयाँ एक होकर आपस में विचार-विमर्श कर रही हैं और कहीं आपको यह दीख पड़े कि देश, धर्म या जाति के कार्य में दो ऐसे सहोदर कार्य कर रहे हैं जो एक दूसरे की बात को काटना जानते ही नहीं प्रत्युत एक दूसरे से एक कदम आगे बढ़कर यह कह रहा है कि नौका में पाना बढ़े, दोनों हाथ उल्लीचिये, घर में बाढ़े दाम । यही सयानो काम ॥
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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