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________________ =सम्यक् विचार जे चेतना लक्षणो चेतनेत्वं, अचेतं विनासी असत्यं च त्यक्तं । जिन उक्त सत्यं सु तत्वं प्रकाश, ते माल दृष्टं हृदयकंठ रुलितं ॥३०॥ चैतन्य- लक्षण-मय आत्मा के, हैं जो निराकुल, निश्चल पुजारी । अनृत, अचेतन, विनाशीक, पर में, जिनको नहीं रंच ममता दुखारी ॥ जिनके हृदय में जिन उक्त तत्वों, की नित्य जलतो संतप्त ज्वाला। उनके हृदय-कंह को ही जगाती, श्रेणिक सुनो ! यह अध्यात्म-माला || हे श्रीगक ! और सुना कि यह माला किसके गले में जयमाल डालती है, उसके जो दैतन्य लक्षण मय आत्मा का बिलकुल और निश्चल पुजारी होता है तथा अचनन, बिनाशीक और मिथ्या पदार्थों में जिसे रचमात्र भी श्रद्धा नहीं होती और भगवान के वचनों से जिसका हृदय तीनों काल प्रकाशित रहता है और तत्वों का प्रकाश जिसके हृदय में नित नये ज्योति के पुंज बिखराया करता है। जे शुद्ध बुद्धस्य गुण सस्य रूपं, रागादि दोषं मल पुंज त्यक्तं । धर्म प्रकाशं मुक्तिं प्रवेशं, ते माल दृष्टं हृदय कंठ रुलितं ॥३१॥ जिन शुद्ध जीवों को दिख चुकी है, निज आत्मकी माधुरी मूर्ति बाँकी । जिनके हगों के निकट झूलती है, प्रतिपल सुमुखि मुक्ति की दिव्य झांकी ।। जो रागद्वेषादि मल से परे हैं, जो धर्म की कान्ति को जगमगाते । इस मालिका को वही शुद्ध दृष्टी, अपने हृदय पर फबी देख पाते । जिन्हें अपनी आत्मा की विशुद्ध झाँकी दिख चुकी है-जो शुद्ध बुद्ध परमात्मा और अपनी आत्मा में अब कोई भेद नहीं पाते हैं-राग द्वेष और संसार के अन्य सभी दोष जिनसे कोसों दूर भाग चुके हैं तथा जिनकी यह स्थिति हो गई है कि धर्म में आचरण कर वे अब धर्म के स्थंभ बन गये हैंधर्म उनसे अब प्रकाशमान होने लगा है। हे राजा श्रेणिक ! ऐसे ही नरश्रेष्ठ इस अध्यात्म गुण की मालिका से अपना यह देव-दुर्लभ जीवन सजाते हैं और उन्हीं के कंठ में रहकर यह समकित माल तीनों काल किल्लोल किया करती है। '
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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