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________________ - सम्यक् विचार = [ ३१ किं दिप्त रतनं बहुवे अनन्तं, किं धन अनंतं बहुभेय युक्तं । किं त्यक्त राज्यं वनवामलेत्वं, किं तत्ववेत्वं बहुवे अनंतं ॥२०॥ जिसके भवन में हीरे जवाहिर, या द्रव्य की लग रहीं राशि भारी । ऐसे कुबेरों ने भी प्रभो क्या, देखी कभी माल यह सौख्यकारी || या राज्य को त्याग जोगी बने जो, उनने विलोकी यह माल स्वामी । या सप्त तत्वों के पंडितों ने देखी गुणावलि यह मोक्षगामी ? हे भगवन् ! जिसके भवन में हीरे, जवाहर या रत्नों की राशियों के डेर लगे थे ऐसे कुबेर ने भी क्या कभी इस मालिका के दर्शन किये ? या जो राज्य पाट को त्याग कर योगी बन गये उन्होंने कभी इस मालिका से अपना हृदय सुशोभित किया या कभी इस मालिका को अपने वक्षस्थल पर वे देख पाये जो जंगलों अथवा पर्वतों में जाकर घोर तप करते हैं और जिनका शरीर तपस्या के मारे सूख कर कांटा हो गया है ? श्री वीरनाथं उक्तं च शुद्धं श्रुणु श्रेण राजा माला गुणार्थं । किं रत्न किं अर्थ किं राजनार्थ, किं तत्व वेत्वं नवि माल दृष्टं ॥ ३१ ॥ बोले जिनेश्वर श्री मुख-कमल से, 'श्रेणिक सुनो मालिका की कहानी | इस आत्म-गुण की सुमनावली के, दर्शन सहज में न हों प्राप्त ज्ञानी ॥ ना तो कभी रत्नधन-धारियों ने, श्रेणिक सुनो मालिका यह निहारी । ना मालिका को उनने विलोका, जो मात्र थे तत्व के ज्ञानधारी ॥ समदर्शी भगवान महावीर बोले- 'श्रेणिक ! मैं इस अध्यात्म माला की कहानी तुमसे कहता हूँ, तुम ध्यान पूर्वक सुनो ! सारभूत बात यह है कि यह अध्यात्म मालिका उन साधारण मालाओं मां माला नहीं, श्रेणिक ! जिसके दर्शन सबको ही सहज में प्राप्त हो जायें। न तो हीरे जवाहरात के धनी इसे पा सके, न वे ही इस माला को पहिन सके जो मात्र तवज्ञाता थे या जो राज्यपाट छोड़कर केवल वेषधारी बनकर जंगलों या पर्वतों में घोर तपस्या को चले गये और तप करते हुये शरीर को मुखा डाला ।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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