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________________ २१८] - सम्यक् आचार प्रोषधोपवास प्रतिमा पोषह प्रोषधस्चैव, उववासं येन क्रीयते । मंमिक्त जस्य हृदयं सुद्धं, उववासं तस्य उच्यते ॥४०८॥ प्रोषध या पर्वो के दिन, उपवास जो नर करता है । वह प्रोषध-उपवास नाम की, शुचि प्रतिमा धरता है । पर इस प्रतिमा का धारी, बस होता वह ही जन है। जिसके अंतरतम में रहता, ध्रुव सम्यग्दर्शन है। प्रोषधोपवास प्रतिमा में पोषहरूप या पवों के दिन उपवास करने का नियम लिया जाता है। जो मनुष्य पवों के दिन या पोपहरूप नियम से सम्यक्त सहित उपवास करता है, वही प्रोषधोपवास प्रतिमा का धारण करनेवाला कहा जाता है। संसार विरचितं जेन, सुद्ध तत्वं च सायं । सुद्ध दिस्टी स्थिरीभृतं उववामं तस्य उच्यते ॥४०९॥ सांसारिक रागों को जिसने, पद-तल से ठुकराया । शुद्ध आत्म को ही जिसने. अपना आराध्य बनाया ॥ जिस उर में धधका करती है. समकित की चिङ्गारी । वह नर ही प्रोषध करने का, है सम्यक अधिकारी ॥ लंघन का नाम उपवास नहीं ! जिसने सांसारिक रागों से मोह छोड़ दिया; शुद्ध तत्व की जिसके हृदय में प्रगाढ़ श्रद्धा हो गई तथा जिसके अंतर प्रदेश में सम्यक्त्व की कभी नहीं बुझने वाली आग प्रदीप हुआ करे उसी पुरुष के उपवास का नाम वास्तविक उपवास है और ऐसा ही उपवास प्रोषधोपवास प्रतिमाधारी को करने का निर्देशन किया गया है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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