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________________ [१६] सिद्ध प्रभो हैं सिद्ध भवन में, परमानंद मगन हैं । समकित समता सुरसरिता मय, उनके युग्म नयन हैं । मैं भी तो हूँ सिद्ध, कि मेरा अंतर सुख-सागर है । मैं ध्रुव, मैं सर्वज्ञ, देह-देवल मेरा आगर है ॥ और दर्शन न्यान संजुक्तं, चरन वीर्ज अनंतयं । मय मूर्ति न्यान सं सुद्धं, देह-देवलि तिस्टते ॥ अमित ज्ञान दर्शन के धारी, अमित शक्ति के सागर । वीतराग, निस्सीम, निराकुल, पुण्य आचरण आगर ॥ ज्ञानमूर्ति, निमूत, निरन्तर, घट घट मय अविनाशी । ऐसे श्री जिन, मेरे तन के देवालय के वासी ॥ प्रस्तुत ग्रन्थ का आचार खंड पांच भागों में और विचार खंड तीन भागों में बंटा हुआ है, जो आद्योपान्त पठनीय है। इस ग्रन्थ का 'प्राचार' खंड पहिले सर्वधर्म समन्वय की दृष्टि को लेकर गीता, महाभारत, बाइबिल, कुरान आदि के उद्धरण सहित निकलने वाला था और "तारणतरण साहित्य सदन" जबलपुर के अन्तर्गत उसकी पूर्ण तैयारियां भी हो चुकी थी, किन्तु किन्हीं कारणोंवश वह प्रयास पुस्तकाकार न हो सका और अब विचार खंड के साथ प्रस्तुत ग्रन्थ आपके सम्मुख उपस्थित है। जैन समाज के अद्वितीय विद्वान् डॉ. हीरालाल जैन ने 'तारगा त्रिवेणी' की भांति फिर इस ग्रन्थ के लिये अपनी प्रस्तावना लिखी है। यह उनका मुझ अकिंचन पर अनुराग ही है, जिसके लिये मैं सिवा 'धन्यवाद' के उन्हें और क्या दे सकता हूँ ! - तीर्थभक्त समाज भूषण सेठ श्री भगवानदास जी शोभालाल जी सागर वालों ने इस ग्रन्थ को मुद्रित कराया है । समाज को तो उनसे ज्ञान-दान मिला ही है, मेरे उत्साह में भी इससे काफी चतना भा गई है, अत: उन्हें भी मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। अन्त में मैं इस युग के गुरुदेव के अनन्य शिष्य, धर्मदिवाकर पूज्य ब्रह्मचारी गुलाबचन्द जी महाराज को जो कि मानवता के बीच आज भी श्रीगुरु की कान्ति का वही विगुल फूक रहे हैं और गुरुदेव के साहित्य को नया रूप देने में दिनरात एक कर रहे हैं, इस ग्रन्थ का सम्पादन करने तथा उसे सैद्धांतिक दृष्टि से पूर्ण बनाने के नाते, धन्यवाद देकर भाप लोगों से विदा लेता हूँ। शरीर क्षणभंगुर है, किन्तु यदि यह बना रहा तो गुरुदेव के अन्यान्य ग्रन्थ लेकर शीघ्र ही मापके सम्मुख उपस्थित होऊँगा। ललितपुर -अमृतलाल चंचल। २२-११-५७
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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