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________________ सम्यक आचार [१४९ पात्र दान मोष्य मार्गस्य, कुपात्रं दुरगति कारनं । विचारनं भव्य जीवानं, पात्र दान रतो सदा ॥२७४॥ सत्पात्रदल को दान देना, मोक्ष का आधार है । दुष्पात्र दल को दान देना, अरे ! दुर्गति द्वार है ।। इसलिये भव्यों को सदा, यह ध्यान देना चाहिये । सत्पात्र जो हो बस उन्हीं को, दान देना चाहिये । जहां सत्पात्रों को दान देना मोक्ष का कारण है, वहां हो कुपात्रों को दान देना दुर्गति का कारण हुआ करता है। अत: विवेको पुरुषों को चाहिये कि दान देने के पहिले वे देख लें कि जिस पुरुष को वे दान दे रहे हैं, वह पात्रों की तीन कोटियों में से किसी कोटि का पात्र है अथवा नहीं। यदि वह पात्र कुपात्र ठहरता है तो उन्हें उसे कदापि दान न देना चाहिये । कुपात्र कुगुरु कुदेव उक्तं च, कुधर्म प्रोक्तं सदा । कुलिंगी जिन द्रोही च, मिथ्या दुरगति भाजन ॥२७५॥ जो मृढ़ करते रे ! कुधर्मों का सदा उपदेश हैं । सर्वज्ञद्रोही जो अरे ! जिनके कुलिंगी वेश हैं। जो नर्क के आधार दुर्गतिमूल हैं दुखधाम हैं। वे पात्रता से हीन हैं, दुष्पात्र उनके नाम हैं। जो कुगुरु कुदेव या कुधर्म की उपासना करने का उपदेश देते हैं या उनका कथन करते हैं; जिनके कुभेष हैं; जो जिनद्रोही हैं और अपने शिष्यों को व स्वयं को जो दुर्गति में ले जाने वाले हैं, ऐसे पुरुष कुपात्रों की कोटि में आते हैं।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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