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________________ सम्यक् आचार मांसं भष्यते जेन, लोनी मुहूर्त गतस्तथा । न च भोक्तं न च उक्तं च, व्यापारं न च क्रीयते ॥ २३०॥ जो पुरुष खाता, दो घड़ी पश्चात् की नवनीत है । वह मांसभक्षी, मांस से, उसको समझलो प्रीत है || इस भांति की नवनीत अनउपदेश्य और अयोग्य है । इस विकृति का व्यापार करना भी, नितान्त अयोग्य है || 1 बाद मक्खन में दो घड़ी के पश्चात् अनंतानंत सम्मूर्च्छन जीव पड़ जाते हैं, अत: विवेकी पुरुष को चाहिये कि वह दो घड़ी के पहले ही मक्खन को घी के रूप में परिणत कर लें । जो पुरुष दो घड़ी के के मक्खन को व्यवहार में लाता है, उसको खाने का उपदेश देता है या उसका व्यापार करता है वह जानबूझकर मांस का भक्षण करता है और यह कहने में पाप नहीं कि उस पुरुष की जिह्वा को मांस खाने में आसक्ति है 1 दो दारिया मही दुग्धं, जे नरा भुक्त भोजनं । स्वादं विचलिते जेब, भुक्तं मामस्य दोषनं ॥ २३१|| [१२७ जो तक्र के या दुग्ध के संग द्विदल करता भक्ष हैं । वह पुरुष खाता मांस है, यह नग्न सत्य प्रत्यक्ष है ॥ जिन वस्तुओं के स्वाद में, जिस क्षण विकृतियाँ आ गई । वे वस्तुएं, उस निमिप से ही, 'मांस' संज्ञा पा गईं ॥ जो दो दाल वाली वस्तुओं को या उनके रूपान्तर को फासू करने आदि का बहाना करके दही छाया दूध के साथ मिलाकर खाते हैं; या जो ऐसी वस्तुओं का सेवन करते हैं जिनका स्वाद कुछ से कुछ हो गया है, वे पुरुष मांस ही का भक्षण करते हैं और मांस खाने के दोष के भागी बनते हैं ।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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