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________________ .. सम्यक् आचार... स्थूल किन्तु ज्ञानमय १८ क्रियाओं का पालन जघन्यं अवृतं नाम च, जिन उक्तं जिनागर्म । साद न्यान मयं सुद्धं, दस अष्ट क्रिया संजुतं ॥१९८॥ अव्रती सम्यग्दृष्टि, यह जिस पात्र का शुचि नाम है । आराध्य होता एक उसका, शुद् आतमराम है ॥ कहते हैं यह, वसुधा में जो सर्वज्ञभाषित शास्त्र हैं । होते हैं अष्ठादश क्रियामय, ये जघन्य सुपात्र हैं । जो जघन्य मोक्ष-साधक श्रेणी के अन्तर्गत आने वाला अत्रत सम्यग्दृष्टि होता है, वह वीतराग प्रभु के बताये हुए मार्ग के अनुसार शुद्धात्मा का अचल श्रद्धान और अठारह क्रियाओं का नियम से पालन करता है। अव्रत सम्यग्दृष्टि के कर्तव्य संमिक्तं सुद्ध धर्मस्य, मूल गुनस्य उच्यते । दानं चत्वारि पात्रं च, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥१९९॥ अवतीजन का आत्म में, होता अडिग श्रद्धान है। वह अष्ट गुण को पालता. करता उन्हीं का गान है। जो तीन विधि के पात्र हैं, करता वह उनका मान है । देता उन्हें आनन्दयुत हो, वह चतुविधि दान है। अत्रत सम्यग्दृष्टि का आत्मा में अचल श्रद्धान होता है। वह पाँच अभक्ष्य फलों को नहीं खाता और मद्य, माँस व मधु इन तीन मकारों का नियम से त्यागी होता है। तीन विधि के पात्रों को चार प्रकार के दान देना भी उसके कर्तव्य का एक अंग होता है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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