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________________ सम्यक् आचार हिमानंदी च राज्यं च, अनृतानंद अनाम्वतं । कथितं अमुह भावन, नमारे भ्रम मदा ॥१०२॥ करना अशुभतम भाव से रे ! चलित राज्यों के कथन । बंधते हैं इससे आत्मा के सँग, मलिनतम कर्म-कण ।। यह कथन हिंसा, मृपामय, कटु म्लान रौद्र-ध्यान है । जो जीव को भव भव घुमा, देता विपत्ति महान है ॥ अशुभ भावनाओं को लेकर, क्षणभंगुर और चलित गज्यों के कथन करना, संमार भ्रमण करने का कारण होता है। क्यों ? इमलिय. कि इन राज्यों के कथन करने में जिन भावनाओं का उपयोग होता है. व पूर्णतया हिंसा में डूबा हुई होती है: अमत्य मे उनका जन्म होता है और उनमें नाममात्र को भी निश्चलपना नहीं होता अर्थात व निरी जड़ और अचेतन होती है। चौथ-चर्चा भयस्य भय भीतस्य, अनृतं दुष भाजनं । भावं विकालतं यांति, धर्म रलं न सुद्धये ॥१०३॥ जो भीरु हैं. जिन प्राणियों के, हैं हृदय भय से सने । देती उन्हें यह दुःखभाजन, चौर विकथा दुख घने । यह कथा भर देती हृदय में, विकलतामय भाव है । रहता नहीं इससे कभी भी, धर्म का सद्भाव है। जो कापुरुष हैं या जिनके हृदय भय से संतप्त रहते हैं, उनको दुःख से भरी हुई चौर्य विकथायें अनेक संतापों की कारण बन जाती हैं। इन डरावनो कथाओं के सुनने से उनके परिणामों में अशान्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे उनके चिरसंचित धर्मरत्न का एकदम लोप हो जाता है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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