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________________ [६] तो देते ही रहते हैं, लेकिन दिगम्बर जैन मूर्तिपूजक समाज की संस्थाओं को भी पाप अपने दान से वंचित नहीं रखते हैं और जब भी आपके सामने कोई माँग पाती है, आप उसे एक कदम बढ़ाकर पूरी कर देते हैं। साल में बराबर भाप नियम से गरीबों को सहस्रों वस्त्र बँटवाते ही हैं। जिनको पाने के लिए दूर दूर से भिखारी पा ही जाते हैं। सागर में आपके स्व० भ्राता जो के नाम से एक "मोहन धर्मार्थ औषधालय" भी चल रहा है जिससे प्रतिदिन सैकड़ों गरीब औषधि प्राप्त करते रहते हैं। धर्म के प्रति आपका स्नेह इतना अधिक है कि जब भी कहीं मेला भरता है या पूज्य ब्रह्मचारी जी का शुभागमन होना है पूरा का पूरा कुटुम्ब उस ओर मुड़ जाता है। जब कोई सामाजिक या धार्मिक गुत्थी उलझ जाती है तो अपने विश्राम का भी ध्यान न रख कर रात के ४-४ बजे तक बैठकर समस्या सुलझाया करते हैं। सुधार के मार्ग में इतने आगे बढ़े हुये हैं कि आज जैनियों में ही नहीं इतर समाजों में भी जो आदर्श विवाह होते हैं, उनके जनक आप ही हैं। अपने पुत्र-पुत्रियों के स्वयं आदर्श विवाह कर, आपने ही सबसे प्रथम इस समान में इस कान्ति का बीजारोपण किया । ये शादियां सामूहिक रूप से आयोजित की जाती हैं जिसमें श्री गुरु महागज के केवल मालारोहण के पुण्य मंत्र ही वर और वधू को जीवन भर के लिए पाणिग्रहण के पवित्र बंधनों में बांध देते हैं। विनोदी दोनों भ्राता इतने हैं कि जहां चार पंच मिले वहीं उनकी हँसी का पिटारा खुल जाता है और फिर वे उनमें इतने घुल मिल जाते हैं, जो देखते ही बनता है। निसई जी पर उदासीन आश्रम और पाठशाला पापकी ही देन है। वि० सं० १६६७ में सागर में वेदी प्रतिष्ठा कराने के उपलक्ष में आप समाज से 'सेठ सा.' की तथा २००१ में अपनी अन्यान्य सेवामों के उपलक्ष में 'समाजभूषण' की पदवी से विभूषित हुए हैं। आज तक आप जैन भजैन संस्थाओं को लाखों का दान कर चुके हैं, और आये दिन करते ही जाते हैं। तारण साहित्य से तो आपको अगाध प्रेम है और उसके प्रचार में दोनों भ्राता सब तरह से अपना तन, मन और धन लगाने को प्रस्तुत बने रहते हैं। निसई जी क्षेत्र की तो आपने काया पलट ही कर दी है। आपके द्वारा वहां का निर्मित स्वाध्याय भवन, तारण द्वार, ब्रह्मचारी निवास, धर्मशाला तथा वेदी जी का विस्तृत रूप वास्तव में देखने योग्य वस्तु हैं। श्री गुरुदेव दोनों भाइयों की यह जोड़ी सुरक्षित बनाये रखें जिससे देश धर्म व जाति का महर्निश कल्याण होता रहे, यही पूरी तारणसमाज की प्रार्थना है और है मंगल काममा । -चंचल ।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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