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________________ जीवन की रूपरेखा [e हरिभद्र के विविध ग्रन्थो मे मिलते है, २२ और इससे हरिभद्र का उपरिनिर्दिष्ट सत्ता समय निर्विवाद सिद्ध होता है । प्रो. के. वी अभ्यंकर ने विशतिविशिका नामक हरिभद्र के प्राकृत ग्रन्थ की प्रस्तावना मे उक्त निर्णय के विरुद्ध शंका उपस्थित की है, परन्तु यदि उन्होने प्रो. जेकोबी का स्पष्टीकरण ध्यान से देखा होता, तो वैसी शका उठाने का उनके लिए कोई काररण न रहता । उनकी शंका यह है कि शक संवत् ७०० मे एक दिन कम यानी शक-संवत् ७०० के अन्तिम का अगला दिन । यह दिन चैत्र कृष्ण चतुर्दशी नही हो सकता, परन्तु फागुन कृष्ण चतुर्दशी हो सकता है, क्योकि फागुन कृष्ण अमावस्या के दिन वर्ष पूरा होता है । यह शंका उचित तो लगती है, लेकिन इसका स्पष्टीकरण प्रो. जेकोबी ने जब उन्होने मुनि श्री जिनविजयजी का निर्णय मान्य रखा तब अपने ढंग से बहुत पहले ही किया है । ऐसा होने पर भी हमे इस बारे मे विशेष ऊहापोह करना योग्य जँचा। इससे हमने प्राचीन एवं अर्वाचीन ज्योतिष के निष्णात प्राध्यापक श्री हरिहर भट्ट के समक्ष यह प्रश्न विशेष स्पष्टता के लिए रखा । उन्होने प्रो जेकोबी के खुलासे पर ध्यान से विचार किया और लभ्य सभी साधनो से जांच पडताल की, तो उन्हें ऐसा लगा कि जेसा प्रो. जेकोबी मानते है उस तरह उस समय दो चैत्र नही, किन्तु दो वैशाख थे, फिर भी चैत्र कृष्ण चतुर्दशी का उल्लेख तो सत्य ही है | २४ २२ देखो 'जैन साहित्य सशोधक' वर्ष १, अक १, परिशिष्ट, पृ० ५३ से । २३ 'समराइच्चकहा' की प्रस्तावना पृ० १-२ । २४ इस विषय मे उन्होने ब्यौरे से हमको जो पत्र लिखा था वह नीचे उद्धृत किया जाता है हरिहर प्रा० भट्ट २२, सरस्वती सोसाइटी, सरखेज रोड, ग्रहमदावाद ७. तारीख ४ -८ - ५८ पूज्य श्री प० सुखलालजी, हरिभद्रसूरि के काल - निर्णय के विषय मे उद्योतनसूरि द्वारा कुवलयमाला मे उल्लिखित एक वाक्य को गरिणत की दृष्टि से जाँचने के लिए आपने मुझसे कहा था । उसके बारे मे मेरा मन्तव्य है कि 1 १. उद्योतन के लिखने के अनुसार कुवलयमाला शक ७०० के अन्तिम से पहिले के दिन चैत्र कृष्णा चतुर्दशी को पूर्ण हुई थी । जेकोबी अपने 'Haribhadra's Age, Life and Works' शीर्षक वाले लेख के फुटनोट ५ मे कहते है कि शक ७०१ मे श्रधिक चैत्र था, परन्तु वस्तुत अधिक चैत्र नही, किन्तु अधिक वैशाख था । पिले की Chronology मे तथा केशो लक्ष्मण छत्रे की अधिक मासिक की तालिका में अधिक वैशाख दिया है। सूर्य
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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