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________________ [७ जीवन की रूपरेखा सुरक्षित न रहा, तब चित्रागद नामक एक मौर्य ने मध्यमिका मे से चित्तौड मे राजधानी बदली।१५ पहाड पर होने के कारण वह अधिक सुरक्षित स्थान था। मध्यमिका के प्राचीन अवशेष अब भी मिलते है । ऐसा प्रतीत होता है कि मध्यमिका मे से चित्तौड पर राजधानी का परिवर्तन होते ही चित्तौड़ का सब तरह से विकास हुआ होगा और विद्या एवं धर्म की जो परम्पराएँ मध्यमिका मे थी उन्होने भी चित्तौड के विकास का लाभ लिया होगा। यह चाहे जो हो, परन्तु ऐसा तो लगता है कि हरिभद्र का जन्मस्थान मूल चित्तौड न हो, तो भी चित्तौड अथवा मध्यमिका मे से किसी एक के साथ उसका अधिक सम्बन्ध होना चाहिए । 'ब्रह्मपुरी' सकेत यथार्थ हो तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि वह चित्तौड अथवा मध्यमिका जैसी नगरी का ब्राह्मणो की प्रधानता वाला कोई उपनगर या मुहल्ला भी हो। इस प्रकार जन्म-स्थान का विचार करने पर हरिभद्र प्राचीन गुजरात के प्रदेश से बहुत दूर के नहीं है। माता-पिता हरिभद्र के माता-पिता का नाम केवल 'कहावली' मे ही उपलब्ध होता है । उसमे माता का नाम गंगा और पिता का नाम शकर भट्ट कहा गया है ।१६ भट्ट शब्द ही सूचित करता है कि वह जाति से ब्राह्मण थे । 'गणधर-सार्धशतक' की सुमतिगणिकृत वृत्ति (रचना सं. १२६५) मे तो हरिभद्र का ब्राह्मण के रूप मे स्पष्ट निर्देश ही है,१७ जब कि प्रभावक-चरित्र मे उन्हे राजा का पुरोहित कहा है ।१८ मतलब कि वह जन्म से ब्राह्मण थे। यदि ब्रह्मपुरी के नाम की उपर्युक्त कल्पना सच हो, तो हरिभद्र के ब्राह्मण होने की कल्पना को उससे और भी पुष्टि मिलती है। प्राचीनकाल से १५ चित्रकूट की स्थापना चित्रागद ने की थी ऐसी कथा 'कुमारपालचरित्रसग्रह' मे पृ० ५ और पृ० ४७-६ पर आती है। यह चित्रागद मौर्य वश का था ऐसा नीचे के आधारों से निश्चित किया जा सकता है - __ श्री हीरानद शास्त्री 'A Guide to Elephanta'-This would show that Mewar and the surrounding tracts were held by a Maurya dynasty during the eighth century after Christ" पृ० ७ 'ख्यातो' मे भी चित्रागद का मौर्य के रूप में निर्देश मिलता है। १६ “सकरो नाम भटो, तस्स गगा नाम भट्टिणी। तीसे हरिभद्दो नाम पडिओ पुत्तो।" ३०० १७ एव सो पडित्तगव्वमुव्वहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो।"-धर्मसग्रहणी की प्रस्तावना मे उद्घ त, पृ० ५ अ १८ शृङ्ग , हरिभद्रसूरीचरित्र, श्लोक ८ "अतितरलमति पुरोहितोऽभून्नृपविदितो हरिभद्रनामवित्त.।"
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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