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________________ समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र खण्डित हो जाती है, तो फिर उस पर पूरा भरोसा कैसे रखा जा सकता है ?२६ हरिभद्र ऐसी तर्क-सरणी द्वारा कुतर्कवाद और अभिनिवेश से मुक्त रहने का औचित्य बतलाते हैं और मानो अपनी सन्त-प्रकृति उपस्थित करते हो इस तरह भारपूर्वक कहते हैं कि सामान्य जन का भी प्रतिक्षेप अर्थात् तिरस्कार करना प्रार्यों के लिए शोभास्पद नही है तो फिर सर्वज्ञ-जैसे महापुरुष का प्रतिक्षेप कैसे योग्य कहा जा सकता है ? ऐसा प्रतिक्षेप, निन्दा या तिरस्कार तो जिह्वाच्छेद की अपेक्षा भी अधिक खराव है । अन्त मे हरिभद्र सदाशिव, परब्रह्म, सिद्धात्मा तथा तथता आदि सभी नामों को एक निर्वाण-तत्त्व के बोधक कहकर उस-उस नाम से निर्वाणतत्त्व का निरूपण एवं अनुभव करने वाले की भक्ति के बारे मे विवाद करने का निषेध करते है । हरिभद्र का यह प्रकरण मानो दार्शनिको के मिथ्या-अभिनिवेश के पाप का प्रक्षालन करता हो ऐसा प्रतीत होता है। (५) गीता मे 'बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः३१ पद आता है । हरिभद्र इस पद को लेकर बुद्धि की अपेक्षा ज्ञान की कक्षा और ज्ञान की अपेक्षा असम्मोह की कक्षा कैसी ऊंची है यह रत्न की उपमा देकर समझाते हैं और अन्त मे कहते है कि सदनुष्ठान मे परिणत होने वाला प्रागमज्ञान ही असम्मोह है । ३२ । (६) न्याय और तर्कशास्त्र एक सूक्ष्म विद्या है। दार्शनिक-ज्ञान के लिए वह आवश्यक भी है, परन्तु बहुत बार समत्व न रहने से तर्क कुतर्क भी बन जाता है । वैसे कुतर्क का स्वरूप समझाने के लिए हरिभद्र ने एक बटुक विद्यार्थी के विकल्प का निर्देश किया है । किसी महावत ने सामने से चले आने वाले नौसिखिये तार्किक बटुक २६ यत्नेनानुमितोऽप्यर्थ. कुशलरनुमातृभि । अभियुक्ततररन्यरन्यथवोपपाद्यते ॥ -योगदृष्टिसमुच्चय, १४३. ३० न युज्यते प्रतिक्षेप सामान्यस्यापि तत्सताम् । आर्यापवादस्तु पुनर्जिह्वाच्छेदाधिको मत ॥ -योगदृष्टिसमुच्चय १३६ ३१. अ १०, श्लो ४। ३२ इन्द्रियार्थाश्रया बुद्धिर्शान त्वागमपूर्वकम् । सदनुष्ठानवच्चतदसमोहोऽभिधीयते ॥ रत्नोपलम्भतज्ज्ञान-तत्प्राप्त्यादि यथाक्रमम् । इहोदाहरण साधु ज्ञेय बुद्धधादिसिद्धये ॥ -योगदृष्टिसमुच्चय ११६-२०
SR No.010537
Book TitleSamdarshi Acharya Haribhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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