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________________ भंते! कतिविपन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते - एगिंदियतेयसरीरे बितिचउपंच० एवं जाव गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स णं मारणंतिसमुग्धाएणं समोहयस्स समाणस्स के महालिया सरीरोगाहणा पन्नता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं आयामेणं जहन्नेणं अहे जव विजाहरसेढीओ उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ, उड्डुं जाव सयाई विमाणाई, तिरियं जाव मणुस्खेत्तं, एवं जाव अणुत्तरोववाइया । एवं कम्मयसरीरं भाणियां ॥ सूत्रम् - १५२ ॥ मूलार्थ :- हे भगवान ! शरीर केटला कह्या छे ? हे गौतम ! पांच शरीर कहा छे, ते आ प्रमाणे- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस अने कार्मण । हे भगवान ! औदारिक शरीर केटला प्रकारनुं कर्तुं छे ? हे गौतम ! ( औदारिक शरीर ) पांच प्रकारनुं कर्तुं छे, ते आ प्रमाणे – एकेंद्रिय औदारिक शरीर यावत् गर्भव्युत्क्रांतिक (गर्भज ) मनुष्य पंचेंद्रियनुं औदारिक शरीर. हे भगवान ! औदारिक शरीरनी केटली मोटी शरीरनी अवगाहना कही छे ? हे गौतम ! जघन्यथी अंगुलना असंख्यामा भाग जेटली अने उत्कृष्टथी कांइक अधिक एक हजार योजन जेटली ( अवगाहना कही छे ) ए ज प्रमाणे जेम अवगाहना कही तेम संस्थान अने औदारिकनुं प्रमाण पण समग्र कहेवुं, ए ज प्रमाणे यावत् मनुष्यना शरीरनी अवगाहना उत्कृष्टथी त्रण गाउनी छे । हे भगवान ! वैक्रिय शरीर केटला प्रकारनुं कर्तुं छे ? हे गौतम! वे प्रकारनुं क छे- एकेंद्रिय वैक्रिय शरीर अने पंचेंद्रिय वैक्रिय शरीर. ए ज प्रमाणे यावत् सनत्कुमारथी आरंभीने यावत् अनुत्तर विमा
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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