SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाय छे. ते विषे मूळ सूत्रमां कह्युं छे के' गंडियाणुओगे अणेगेत्यादि - तेमां कुलकर गंडिकाने विषे विमलवाहन विगेरे कुलकरोना पूर्वजन्मादिक कहेवाय छे. ए ज प्रमाणे शेष ( वाकीनी ) गंडिकाने विषे अभिधान प्रमाणे ( गंडिकाना नाम प्रमाणे ) अर्थ चित्रांतर गंडिका सुधीनो जाणवो. तेमां विशेष ए के -- समुद्रविजयने आरंभीने वसुदेव पर्यंत दश दशाह जाणवा. तथा चित्रा एटले अनेक अर्थवाळी अंतरे एटले ऋषभ अने अजितनाथने आंतरे गंडिका एटले एक वक्तव्यताना अर्थवाळा अधिकारने अनुसरनारी, त्यारपछी चित्र एवी अंतरगंडिका ते चित्रांतरगंडिका एम (चित्र अने अंतरगंडानो कर्मधारय समास करवो ) आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे -- श्रीऋपभस्वामी अने श्रीअजितनाथ तीर्थकरना आंतरामां तेना वंशमां थयेला राजाओने वीजी गतिमां जवाना अभावने लीधे मात्र मोक्षगति अने अनुत्तरविमाननी प्राप्तिने कनारी चित्रांतरगंडिका कहेवाय छे. ते गंडिका " चोइस लक्खा० - - चौद लाख राजाओ निरंतरपणे सिद्ध थाय, पछी एक राजा सर्वार्थसिद्धे जाय. ए प्रमाणे एक एक स्थानने विषे असंख्याता पुरुषयुग थाय छे " इत्यादि ग्रंथे करीने नंदि - सूत्रांनी टीकामां का छे त्यांथी ज जाणी लेवा, केमके अहीं तो मात्र सूत्रनी ज व्याख्या कहेवानी इच्छा राखी छे इति शेष सूत्र निगमन पर्यंत सुगम छे. तेमां विशेष ए के - ' संखेज्जा वत्थु त्ति '- संख्याती एटले बसो ने पचीश वस्तु छे. ' संखेजा चूलवत्थु त्ति '-- संख्याती एटले चोत्रीश चूलिका वस्तु छे. इति ॥ १२ ॥ सूत्र- १४७ ।। द्वादशांग विषे विराधना करवाथी उत्पन्न थतुं त्रिकाळ संबंधी फळ देखाडता सता कहे छे- मू० - इच्छेयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy