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________________ तेथी; कारण के आवा साधुओ भवनपतिने विपे उत्पन्न थता नथी । तथा चिरकाळ सुधी भोगभोगान् एटले मनोहर शब्दाटिक भोगोने भोगवीते. केवा भोगो ? ते को छे-दिव्य एटले स्वर्गमां उत्पन्न थयेला तथा 'महान-मोटा एटले आत्यंतिक अर्हान् एटले प्रशस्तपणाए करीने पूजवा लायक एवा भोगो भोगवीने पछी त्यांथी एटले ते देवलोकथी काळना। क्रमथी चवेला तथा वळी लब्धसिद्धिमार्ग एटले जेओ मनुष्यगतिने विपे ज्ञानादिक मोक्षमार्गने पामेला छे तेओनी जे प्रकारे अंतक्रिया एटले सिद्धि थाय छे ते प्रकारे आ अंगमा कहेवाय छे एम संबंध जाणवो । तथा चलितानां एटले कोड़पण प्रकारे कर्मना वशथी परीपहादिकने विपे धीरज नहीं रहेबाथी संयमनी प्रतिज्ञाथी भ्रष्ट थवेलाने देवसहित मनुष्य (देव अने मनुष्य) संबंधी जे धीरपणुं उत्पन्न करनारा कारणो-दृष्टांतो छे, ते आ अंगमां कहेबाय छे. अहीं भावार्थ आ प्रमाणे छे--जेम आर्यापाढाभूतिने देवे धीर (स्थिर) कर्या, अथवा जेम मेघकुमारने भगवान महावीरस्वामीए धीर कर्या, अथवा जेम शैलकाचार्यने पंथक साधुए धीर (स्थिर) कयों, तेम धीर करवाना कारणो ते अंगमां कहेवाय छे. केवांते कारणो? ते कहे छे--बोधनानशासनानि-बोधन एटले मार्गथी भ्रष्ट थयेलाने मार्गमां स्थापवा, अनुशासन एटले दुष्ट स्थितियाळाने सारी स्थितिनुं संपादन ( प्राप्त) करवू ते, अथवा वोधन एटले आमंत्रण (संवोधन), ते पूर्वक जे अनुशासन (उपदेश) ते बोधनानुशासन कहीए. तथा 'गुणदोपदर्शनानि'-संयमनी आराधना करवामां गुण छे अने अन्यमा (आराधना नहीं करवामां) दोष छे, ए प्रमाणेना दर्शन एटले वाक्यो आ अंगमां कहेवाय छे एम संबंध करवो। तथा दृष्टांतोने एटले ज्ञातोने अने प्रत्ययोने एटले बोधिना कारणभूत वाक्योने सांभळीने लौकिकमुनिओ शुक परिव्राजक विगेरे जे प्रकारे जरा मरणने नाश రాతన కాలం ఆగాక ఆకులు
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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