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________________ सुअगडांग परिचय। -'एवं नाय त्ति'-आ सूत्र भणीने (भणनार साधु ) ए प्रमाणे ज्ञाता थाय छे के जे प्रमाणे आ सूत्रमा का होय. समवायाङ्ग एवं विन्नाय त्ति'-विविध प्रकारे के विशेष प्रकारे जे जाणनार ते विज्ञाता कहेवाय छे. ए प्रमाणे विज्ञाता थाय छ सूत्र ॥ एटले अन्य शास्त्रोने पण जाणनार थाय छे अर्थात् अन्य शास्त्रोना जाणकारथकी अत्यंत वधारे प्रधान-जाणकार थाय -चोअंगछ । ' एवं ' इत्यादि निगमन( समाप्ति )नु वाक्य छे' एवं ' एटले आचार, गोचर, विनय विगेरे कहेवारूप आ प्रकारे 'चरणकरणप्ररूपणता आख्यायत इति'-चरण एटले व्रत, साधुधर्म, संयम विगेरे अनेक (सीतेर) प्रकारनुं चारित्र, ॥२१४॥ करण एटले पिंडविशुद्धि, समिति विगेरे अनेक (सीतेर ) प्रकारचें करण, ते बन्नेनी प्ररूपणा ज कहेवाय छ, प्रज्ञापना कराय छे विगेरे पूर्वनी जेम जाणवू । 'सेत्तं आयारे त्ति'-ते आ आचारवस्तु अथवा ते आ आचार करो के जे पूर्व जोयो हतो ( एम ग्रंथकार कहे छे) ॥१ ।। सूत्र-१३६ ॥ . हवे बीजुं सूत्रकृतांग कहे छे.-- मू०-से किं तं सूअगडे ? सूअगडे णं ससमया सूइज्जति, परसमया सूइज्जति, ससमयपर, समया सूइज्जति, जीवा सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति, लोगो सूइज्जति, अलोगो 9 सूइजति, लोगालोगो सूइज्जति । सूअगडे णं जीवाजीवपुण्णपावासवसंवरनिजरणबंधमोक्खा वसाणा पयत्था सूइज्जति । समणाणं अचिरकालपवइयाणं कुसमयमोहमोहमइमोहियाणं संदेह- ॥२१॥ A
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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