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________________ करवी - जे आ गणिपिटक छे ते द्वादशांग कयुं छे. ते आ प्रमाणे - आचार १, सूत्रकृत २, इत्यादि । अहीं शिष्य प्रश्न करे छे के - " ते आचार वस्तु कइ छे ? अथवा तो आ आचार कयो छे ? " । उत्तर - आचरणनुं नाम आचार कहेवाय छे, अथवा जे आचरण कराय ते आचार कहेवाय छे अर्थात् साधुओए आचरेलो ज्ञानादिकनी सेवानो विधि, आने प्रतिपादन करनार ( कहेनार ) ग्रंथ पण आचार ज कहेवाय छे। ' आयारेणं ति ' - करणभूत आ आचारे करीने (करणमां तृतीया विभक्ति) साधुओनो आचार कहेवाय छे एवो क्रियापदनो संबंध करवो. अथवा अधिकरणभूत आचारने विपे (अधिकरणमां सप्तमी विभक्ति) 'णं' शब्द वाक्यनी शोभा माटे छे. श्रमण एटले तपलक्ष्मीए करीने सहित अने निर्ग्रथ एटले बाह्य अने आभ्यंतर ग्रंथिए (परिग्रहे) करीने रहित एवा साधुओनो ( आचार विगेरे कहेवाय छे). अहीं कोइ शंका करे के-जे श्रमण छे ते निर्बंथ ज छे, तथी आ (निर्ग्रथ ) विशेषण शा माटे आप्युं १ तेनो जवाब कहेवाय छे आ विशेषण शाक्यादिक मतना श्रमणोने दूर करवा माटे आप्युं छे. कयुं छे के - " निग्रंथ, शाक्य, तापस, गैरिक अने आजीविक आ पांच प्रकारना श्रमण कहेवाय छे. " इति । तेमां आचार एटले ज्ञानादिक अनेक प्रकारनो छे ते १, गोचर एटले भिक्षा ग्रहण करवानो विधि २, विनय एटले ज्ञानादिकनो विनय करखो ते ३, वैनयिक-ते विनयनुं कर्मक्षयादिक फळ थाय ते ४, स्थानकायोत्सर्ग करवो, बेसवुं, सुबुं, एम त्रण प्रकारनुं स्थान ५, गमन - विहारभूमि विगेरेमां जनुं ते ६, चंक्रमण - उपाश्रयनी अंदर शरीरना श्रमने दूर करवा माटे आम तेम चालबुं ते ७, प्रमाण-भात, पाणी, आहार (कोळीया ) अने उपधि विगेरेनुं मान- प्रमाण ८, योगयोजन - स्वाध्याय, प्रत्युपेक्षण विगेरे कार्यमां बीजाओने जोडवा - प्रेरवा ते ९, भाषा - साधुने सत्या अने
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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