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________________ एसु दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पन्नत्ता । ४ । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुरांम लोगंमि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था । ५॥ ॥ ४००॥ सूत्रम्-१०६॥ मूलार्थ:-श्रीसंभवनाथ अरिहंत चार सो धनुष ऊंचा हता (१)। सर्वे निषध अने नीलवंत नामना वर्षधर पर्वतो। चार सो चार सो योजन ऊंचा तथा चार सो चार सो गाउ उद्वेधवाळा कह्या छ (२)। सर्वे वक्षस्कार पर्वतो निषध अने नीलवंत नामना वर्षधर पर्वतोनी पासे चार सो चार सो योजन उंचा अने चार सो चार सो गाउ ऊंडा कह्या छे (३)। आनत अने प्राणत ए वे कल्पने विषे चार सो विमान कह्या छे (४)। श्रमण भगवान श्रीमहावीरस्वामीने देव, मनुष्य अने असुर लोकने विपे वादमा पराजय न पामे तेवा चार सो वादीओनी उत्कृष्ट संपदा हती।५।। ४००॥ टीकार्थ:--'सब्वे विणं वक्खारपव्वएत्यादि-वक्षस्कार पर्वतो एक क्षेत्रमा ( महाविदेहमां) रहेला वीश छे (१६ वक्षस्कार ने ४ गजदंता मळीने २० समजवा) ते वक्षस्कारो अने बे वे वर्षधरो चार सो चार सो योजन ऊंचा छे | (३)॥४०० ।। सूत्र-१०६॥ हवे साडाचार सोमुं स्थान कहे छे-- .. मूळ-अजिते णं अरहा अद्धपंचमाइं धणुसयाइं उडं उच्चत्तेणं होत्था।१। सगरे णं राया
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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