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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ चोथुं अंग ॥१८८॥ प्रमाणे ) दर्शन गुणाधिकना १०, अनाशातनाना ६०, औपचारिकना ७, वैयावृत्यना १४. कुल ९१ (१) । तथा कालोद नामनो समुद्र छें तेनी परिधि कांइक अधिक एकाणु लाख योजननी छे. तेमां जे अधिक छे ते आ प्रमाणे- सीतेर हजार, छ सो ने पांच ( ७०६०५ ) योजन, सत्तर सो ने पंदर ( १७१५ ) धनुष अने कांइक अधिक सत्ताशी (८७) अंगुल एंटलं जाणवुं (२) । आहोहिय एटले नियमित क्षेत्रने जाणनार अवधिज्ञानी काळोदधि समुद्र परत्वे तेटलं जोवे (३) । आयुष्य अने गोत्र ए वे कर्मने वर्जीने वाकीना छ कर्मों एटले ज्ञानावरण १, दर्शनावरण २, वेदनीय ३, मोहनीय ४, नाम ५ अने अंतराय ६. तेना अनुक्रमे पांच १, नव २, वे ३, अठ्ठावीश ४, वेताळीश ५ अने पांच ६ भेदो छे ( एटले ते छ कर्मनी उत्तरप्रकृति सर्व मळीने ९१ थाय छे ) (४) ॥ सूत्र - ९१ ॥ हवे चाणु स्थान कहे छे मू० - बाणउई पडिमाओ पन्नत्ताओ |१| थेरे णं इंदभूती बाणउइ वासाई सव्वाउयं पालता सिद्धे बुद्धे |२| मंदरस्स णं पवयस्स बहुमज्झदेसभागाओ गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पच्चच्छिमिले चरमंते एस णं बाणउई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते | ३ | एवं चउन्हं वि आवासपवयाणं । ४ ॥ सूत्रम् - ९२ ॥ मूलार्थ:-वाणु प्रतिमाओ कही छे (१) । स्थविर इंद्रभूति बाणुं वर्षनुं सर्व आयुष्य पाळीने सिद्ध थया, बुद्ध थया. (२) । मेरु समवाय ९२ ॥ ॥१८८॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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