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________________ समवाय ७२॥ कृष्णपक्षनी प्रतिपदाए १, वीजी कृष्णपक्षनी तेरशे २, त्रीजी शुक्लपक्षनी दशमीए ३, चोथी कृष्णपक्षनी सातमे ४, तथा समवाया। पांचमी आवृत्ति शुक्लपक्षनी चतुर्थीने रोज प्रवर्ते छे ५. आ सर्व आवृत्तिओ श्रावण मासमां आवे छे (१)।" वीर्यप्रवाद नामर्नु त्रीजुं पूर्व छे. तेमा 'पाहुड त्ति'-प्राभृत अधिकार विशेष (ते ७१ कहेला छे) (२)। 'अजिए इत्यादि'बोधू अंग ते अजितनाथ तीर्थकरने अढार लाख पूर्व कुमारपणामां अने त्रेपन लाख पूर्व तथा उपर एक पूर्वांग एटलो समय राज्य पणामां व्यतीत थयो, ए प्रमाणे एकोतेर लाख पूर्व थया. अहीं जे एक पूर्वांग अधिक छे ते अल्प होवाथी तेनी विवक्षा ॥१६५॥ (कहेवानी इच्छा) करी नथी (३) । सगर नामना वीजा चक्रवर्ती, ते अजितस्वामीने काळे थया हता ( ते पण ७१ लाख पूर्व अणगार थया हता) (४) ॥ सूत्र-७१ ।। हवे बोतेरमुं स्थान कहे छे: मू०-बावत्तरि सुवन्नकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ।१। लवणस्स समुदस्स बावत्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति ।२। समणे भगवं महावीरे बावत्तरि वासाइं सवाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव प्पहीणे । ३। थेरे णं अयलभाया बावत्तरि वासाइं सवाउयं पालइत्ता सिद्धे जाव प्पहीणे । ४ । अभितरपुक्खरद्धे णं बावत्तरिं चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, बावत्तरि सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा । ५। एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवाहिस्स ॥१६५॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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