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________________ हजार योजन प्रमाण थाय छे, (एटलं बच्चे आंतरं छे) केम के जंबूद्वीपना पीस्ताळीश हजार योजन, लवणसमुद्रना चार हजार | योजन अने गौतमद्वीपना विष्कभना बार हजार योजन एत्रणे मळीने ओगणोतेर हजार थाय छे (२)। मोहनीय कर्मने। वर्जीने बाकीना कोनी ओगणोतेर उत्तरप्रकृतिओ थाय छे ते शी रीते ? ते कहे छे-ज्ञानावरणनी पांच, दर्शनावरणनी नव, वेदनीयनी वे, आयुष्यनी चार, नामनी वेताळीश, गोत्रनी वे अने अंतरायनी पांच-आ सर्व मळीने ६९ थाय छे (३) ॥ सूत्र-६९ ।। हवे सीतेरमुं स्थान कहे छे मू०-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वइकंते सत्तरिएहिं राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ । १ । पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरिं वासाइं बहुपडिपुन्नाइं सामन्नपरियागं पाउणित्ता सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे । २ । वासुपुजे णं अरहा सत्तरं धण्इं उड्डे उच्चत्तेणं होत्था ।३। मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरं सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मट्ठिई कम्मनिसेगे पन्नत्ता । ४ । माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तरि सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ। ५॥ सूत्रम्-७०॥ - मूलार्थः-श्रमण भगवान महावीरस्वामीए वर्षाऋतुना वीश दिवस सहित एक मास व्यतीत थये सते अने सीतेर | रात्रिदिवस शेष रहे सते वर्षावास प्रत्ये निवास कयों (चोमासु रह्या) (आ हकीकत पर्युपणा माटे समजवी) (१)। " TA F
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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