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________________ एटले सौथी नीचे 'पढमावलियाए त्ति-उत्तरोत्तर (उपर उपरनी) आवलिकानी अपेक्षाए पहेली चार आवलिका जे पहेला - पाथडानी चारे दिशाए छे ते प्रथमावलिका कहेवाय छे (बहुव्रीहि समास) आवा पहेली आवलिकावाळा पहेला पाथडाने विपे, अथवा ( ' पढमावलियाए-' ) पहेला एटले मूळमां रहेला विमानेंद्रकथी आरंभीने जे आ आवलिका एटले विमानोनी पूर्वी कही तेवडे ( तत्पुरुष समास तृतीया विभक्ति) अथवा ( ' पढमावलियाए-' ) उत्तरोत्तर आवलिकानी अपेक्षाए एक एक ( दरेक ) दिशामां जे पहेली आवलिका कही छे तेने विपे ( सप्तमी विभक्ति ) अथवा ' पढसावलियत्ति ' . आवो पाठांतर होय तो उत्तरोत्तर आवलिकानी अपेक्षाए एक एक दिशामां जे पहेली आवलिका कही छे ते ( प्रथमा विभक्ति ) बासठ बासठ विमानना प्रमाणवडे कही छे. ' एगमेगाए त्ति ' - उड्ड विमान नामना देवेंद्रकनी अपेक्षाए एक एक पूर्वादिक दिशामां बापठ बासठ विमानो कहां छे, तथा बीजा, त्रीजा विगेरे पाथडाने विषे एक एक ओछा विमानो होय छे, यावत् ( ते छेवटे) बासठमा अनुत्तर देवलोकना पाथडामां सर्वार्थसिद्ध नामना देवेंद्रकनी पडखे ( चारे दिशाए ) एक एक जविमान होय छे (४) । तथा ' सव्वे त्ति --सर्वे वैमानिक देवविशेषोना बासठ विमानना पाथडाओ पाथडाना कुल प्रमाणे करीने कला छे ( ५ ) ॥ सूत्र- ६२ ॥ हवे त्रेसठ स्थान कहे छे मू० - उसमे णं अरहा कोसलिए तेसट्ठि पुवसयसहस्साइं महाराय मज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाओ अगर aइए |१| हरिवासरम्मयवासेसु मणुस्सा तेवट्ठिए राईदिएहिं संपत्तजोवणा
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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