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________________ समनाय उन्नत, पाठांतरे 'उन्नामे'-एटले उन्नाम (ऊंचु-अकड रहे ते), तथा माया विगेरे सत्तर नाम माया कपायना छे. समवायाजतेमा णूमे'-एटले न्यवम (नीचुं नमी जq ते ), 'क' एटले कल्क, 'कुरुए -एटले कुरुक, 'जिम्हे'-एटले पत्र॥ जैल (वक्रता) । तथा लोभ विगेरे चौद नाम लोभ कपायना छे. तेमा भिजा अभिज ति'-अभिध्यान ते अभिध्या, चो' अंग अहीं 'तीत ''विधान' इत्यादिकनी जेम विकल्पे अकारनो लोप थवाथी भिध्या अने अभिध्या एवा वे शब्द थवाथी वे नाम आप्या छे ( अर्थात् अभिध्या शब्दमां अकार निषेधवाळो नथी)(१)।' गोथूमेत्यादि'-गोस्तूभ नामनो ॥१४६॥ पर्वत पूर्व दिशामां लवणसमुद्रनी मध्ये वेलंधर नागराजनो निवासभूत छे. तेनी पूर्व तरफना छेडाथी नीकळीने (आरंभीने) वडवामुख नामना महा पातालकलशनी पश्चिम दिशाना अंत सुधी वचमां जे व्यवधान (आंतरं) थाय छे, ते आंतरं। अबाधाए करीने एटले व्यवधान विना बावन हजार. योजनः थाय छे, ए.प्रमाणे अक्षरार्थ करवो. तेनो भावार्थ आ प्रमाणे छे-अहीं लवण समुद्रमां पंचाणुं हजार योजन अवगाहीने ( दूर जइए ) त्यां- पूर्वादिक दिशामां अनुक्रमे वडवामुख, केतुक, युप अने ईश्वर नामना चार महा पातालकलशो छ, तथा जंबूद्वीपना (तेनी जगतीना) छेडाथी बेंताळीश हजार योजन अवगाहीए त्यां हजार हजार योजनना विष्कंभवाळा गोस्तूभ विगेरे चार पर्वतो वेलंधर नागराजना निवासभूत छे. तेथी पंचाणुमांथी तालीश बाद करवाथी वावन हजार वाकी रहे छे, तेटलं आंतरूं थाय छे (२) । तथा सौधर्ममा बत्रीश लाख विमान छे, सनत्कुमारमा बार-लाख छे अने माहेंद्रमा आठ लाख छे, ते सर्वे मळीने बावन लाख थाय छे (५)। सूत्र-५२॥ हवे त्रेपनमुं स्थान कहे छ AL ॥१४॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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