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________________ ते देवो अहावीश अर्धमासे (पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निश्वास ले छे (१)। समवाय २८॥ समवाया। ते देवोने अठ्ठावीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छ के जेओ। अहावीश भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥ चोधं अंग टीकार्थ:-अठावीशमुं स्थानक पण स्पष्ट छे. विशेप ए के-अहीं स्थितिनां सूत्रोनी पहेलां पांच सूत्रो छे. तेमां आचार एटले पहेलं अंग, तेनो प्रकल्प एटले अमुक अध्ययन के जेनुं वीजु नाम निशीथ छे ते. अथवा तो आचारनो ॥१०॥ प्रकल्प एटले ज्ञानादिक विषयवाळा साधुना आचारनी जे व्यवस्था ते पण आचार प्रकल्प कहेवाय छे. तेमां ज्ञानादिकना कोइक आचारना संबंधमां कोई साधुए अपराध को होय त्यारे तेने अमुक दिवसोनुं प्रायश्चित्त आप्यु होय, त्यारपछी फरीने ते साधुए बीजो कोइ अपराध कर्यो, त्यारे तेने प्रथम आपेला प्रायश्चित्तमां वधारो करीने एक मास सुधी वहन करवा योग्य मासिक प्रायश्चित्त आप्यु, तो ते मासिकी आरोपणा कहेवाय छे १, तथा पांच रात्रिवडे शुद्ध थइ शके तेवा अने एक मासवडे शुद्ध थइ शके तेवा वे अपराधने कोइ साधुए कर्या होय तो तेने पूर्वे आपेला प्रायश्चित्तमां पांच रात्रि सहित एक मासनाने प्रायश्चित्तनुं आरोपण करवाथी एक मास ने पांच रात्रिनी आरोपणा कहेवाय छे २, ए प्रमाणे (५-१०-१५-२०-२५ रात्रिनुं ने छेवट एक मासर्नु प्रायश्चित्त आपवाथी) मासिकी आरोपणा छ प्रकारनी जाणवी ६, एज प्रमाणे वे मासनी छ ६,त्रण मासनी छ ६, चार मासनी छ ६ मळी कुल चोवीश आरोपणा थइ २४, तथा अढी दिवस अने एक पखवाडियाना उप१ एक मास अने पांच दिवस, प्रायश्चित्त हतुं तेनुं अर्ध कर्यु ते उपघात जाणवो. ते उपघातवडे लघु मास थयो. M॥१०॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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