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________________ समवार २२॥ सूत्र॥ kवमाइं ठिई पन्नत्ता । ७ । जे देवा महियं विसूहियं विमलं पभासं वणमालं अच्चुतवडिंसगं | समवायाङ्ग | विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । ८॥ ते णं देवा बावीसाए अद्धमासएणं आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा चोj अंग व १। तेसि णं देवाणं बावीसवाससहस्सहिं आहारटे समुप्पज्जइ । २ । संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बावीसं( साए ) भवग्गहणोहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिवाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । ३॥ सूत्रम्-२२॥ . मूलार्थ:-बावीश परीपहो कह्या छे, ते आ प्रमाणे-क्षुधा परीपह १, पिपासा परीपह २, शीत परीपह ३, उष्ण परीपह ४, शमशक परीपह ५, अचेल परीपह ६, अरति परीपह ७, स्त्री परीपह ८, चर्या परीपह ९, नैपेधिकी परीपह १०, शय्या परीषह ११, आक्रोश परीपह १२, वध परीपह १३, याचना परीपह १४, अलाभ परीपह १५, रोग परीपह १६, तृणस्पर्श परीपह १७, जल्ल परीपह १८, सत्कारपुरस्कार परीपह १९, प्रज्ञा परीपह २०, अज्ञान परीपह २१, तथा दर्शन परीपह २२ (१) । दृष्टिवाद नामना बारमा अंगमा बावीश सूत्रो छिन्नछेद नयवाळां एटले एक सूत्र तथा तेनो अर्थ वीजा सूत्र तथा तेना अर्थनी अपेक्षा करनार न होय एवा छे, अने ते स्वसमय ( जैनमत) ना आश्रयवाळी सूत्रोनी परिपाटिने विषे रहेला छ। (२)। तथा बावीश सूत्रो अच्छिन्नछेद नयवाळां छे ते आजीविक मतना आश्रयवाळी सूत्रोनी परिपाटिने विषे रहेला छे. 14 . ॥८३॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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