SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलार्थ:- ज्ञाता सूत्रना ओगणीश अध्ययनो कह्यां छे, ते आ प्रमाणे - उत्क्षिप्तज्ञात १, संघाटक २, अंड ३, कूर्म ४, सेलक५, ६, रोहिणी ७, मल्ली ८, माकंदी ९, चंद्रिका १०, दावदव ११, उदकज्ञात १२, मेंडक १३, तेतली १४, नंदीफळ १५, अवरकंका १६, आकीर्ण १७, सुंसमा १८ तथा बीजं - छेल्लुं ओगणीशमं पुंडरीकज्ञात नामनुं अध्ययन १९ (१) । जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे वे सूर्य छे ते उत्कर्षथी ओगणीश सो योजन ऊंचे अने नीचे थइने ताप आपे छे ( २ ) । शुक्र नामनो महा ग्रह पश्चिम दिशामां उदय पामी ओगणीश नक्षत्रोनी साथे चार चरीने ( भ्रमण करीने) पश्चिम दिशामां ज अस्त पामे छे (३) । जंबूद्वीप नामना द्वीपना गणितमां जे कळा आवे छे ते एक योजननो ओगशमो भाग को छे ( ४ ) । ओगणीश तीर्थंकरोए गृहवास मध्ये वसीने पछी मुंड थइने अगार ( घरवास ) थकी अनगारपणे प्रव्रज्या लीधी ( राज्य भोगवीने पछी दीक्षा लीधी ) ( ५ ) ॥ आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी ओगणीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( १ ) । छठ्ठी नरकपृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी ओगणीश सागरोपमनी स्थिति कही छे ( २ ) । केटलाक असुरकुमार देवोनी ओगणीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ३ ) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी ओगणीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ४ ) । आनत कल्पने विषे देवोनी उत्कृष्ट स्थिति ओगणीश सागरोपमनी कही छे ( ५ ) । प्राणत कल्पने विषे देवोनी जघन्य स्थिति ओगणीश सागरोपमनी कही छे ( ६ ) । जे देवो आनत, प्राणत, नत, विनत, घन, सुषिर, इंद्र, इंद्रकांत, इंद्रोत्तरावतंसक नामना विमानने विषे देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy