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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ चो अंग ॥ ६२ ॥ देवा सोलसहिं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा १ । तेसि णं देवाणं सोलसवाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ २ | संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे सोलसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्सति मुश्चिस्सति परिनिवाइस्संति सवदुक्खाणमंत करिस्सति ३॥ सूत्रम् - १६ ॥ मूलार्थः – सुयगडांगसूत्रमां सोळ अध्ययनमां छेल्लुं गाथापोडशक नामनुं अध्ययन कहेलुं छे, ते आ प्रमाणे – समय, वैतालीय, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीरस्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथिक, ग्रंथ, यमकीय (आदानीय) अने सोळमुं गाथाषोडश कहेलं छे (१) । सोळ कपायो कहेला छे, ते आ प्रमाणेअनंतानुबंधी क्रोध, अनंतानुबंधी मान, अनंतानुबंधी माया, अनंतानुबंधी लोभ, अप्रत्याख्यानकषाय क्रोध, अप्रत्याख्यानपाय मान, अप्रत्याख्यानकपाय माया, अप्रत्याख्यानकपाय लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ, संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लोभ ( २ ) । मेरुपर्वतना सोळ नाम कहां छे, ते आ प्रमाणे—मंदर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, प्रियदर्शन, लोकमध्य, लोकनाभि, अर्थ, सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तर ( उत्तम ), दिगादि अने सोळमुं नाम अवतंसक ( ३ ) । पुरुषोने मध्ये आदान नामकर्मवाळा पार्श्वनाथ अरिहंतने सोळ हजार साधुओनी उत्कृष्ट श्रमणसंपदा हती ( ४ ) । आत्मप्रवाद नामना समवाय १६ ॥ ॥ ६२ ॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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