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________________ भ० महावीर-स्मृति मंध भर खुली रस्सी रहती है और उनके पास एक टीएफ जलता रहता प्रायः पुरोहित आग ३, जिससे यजमान कहता है " लक्ष लाम"। पुरोहित करता है कि " सवाल लाम हो!" और बहिये वद कर देता है । रातभर घरमें उन लोग जागरण करते हैं और प्रात: उठकर मगलकामना करते हैं । इस प्रकार हिन्दू दिवाली मनाई जाती है। इस वर्णनको देसार देशके मिन्न भागों में दिवाली मनानेका अन्तर सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। श्यामदेशमभी दिवाली मनाई जाती है। अमावास्याको वास में लटका कर दीपक राव भर जलाये जाते हैं और चतुर्दशी, अमावस्या एवं प्रतिपदाके दिन नदियोंमें बसते हुये दीपक महासे जाते हैं। इन दिनों आतिशबाजीमी छोधी जाती है। किन्तु श्याममें इस त्योहारकी उत्पत्ति के हुई, यह अज्ञात है! 'मराग कॉनीकल' में महदजी सिंधिया (१७७४-१७८५६०) के विवरणमें लिखा है कि कोटामें दिवाली चार दिन मनाई जाती थी। कोटा नरेश " दारुची लंका" (आतिशबाजीकी लंका) वनवा कर उसमें हनुमान द्वारा आग लगवाते ये । पूनामें पेशवाकी आमाले महदवीने पार्वती पर्वत पर यह उत्सव रचाया था। सभवत. तभीसे दक्षिणमें दिवाली पर पटाखे छोडनेफी प्रया चली है। दिवाली-उत्सवका सचित्र चित्रण जैन ' कल्पसूत्र' में मिलता है, जिसे प्रो० ब्राउनने वाशिंगटनमें (१९३४) छपवाया था। इस चित्रमें एक चंदोवाके नीचे तीन पुरुष हायोंमें मशाल लिये अकित है, जो संभवतः लिच्छवि, मह और वैदेहिक राजाओंके योतक है। उसके नीचे 'दीवाली' लिखा हुआ है। यह चित्र १६ वीं शबाब्दीका अनुमान किया गया है। शास्त्रीय उल्लेखों पर विचार करनेसे हमको 'कल्पसूत्र के पश्चात् दिवालीका उल्लेख 'फाम (सन् ५०-५००) में 'यक्षरात्रि के नाम मिलता है, क्योंकि श्री. हेमचन्द्राचार्यने दीवालीकाही अपर नाम "जक्खरती' यक्षरात्रि) दिखा है। यशोधरने अपनी टीकामें 'यक्षरात्रि को 'सुखरात्रि लिखा है। 9. Stevensoni, Rites of the Twice-Bora, (Religious Quest of India Series ) pp. 335-340 - 'उत्तर भारत में धनतेरसको रोशनी नहीं की जाती । पटाखे तो किसी दिन नहीं छोडे आते । लोग मिलनेमी नहीं जाते । चौदसको भूत-प्रेतके शमन के लिये कोई मिया नहीं करते । न लडके तेल मांगने जाते हैं। लडकोंकी 'टेलू' प्रथा दिवाली से पहले होती है। कई दिनोंतक लडके मनुध्याकार दोषट पर दीपक रख कर घर-घर पैसे मांगते हैं। दिवाली पर टेसूका जल प्रवाह कर दिया जाता है। अनी इस प्रथाको नहीं मानते हैं। का०प्र० 1 २ Gerini, Sramese Festrrate and Faste, pp. 885-890 (ERE,V) 3. arautai aat by K v Sohoni, ed. K N Senc, Poopa p 149. , Brown, Midiature Paintings of the Jaina Kalpasutra, o 40-Plate 25 * Annals of Bhandarkara Oncatal Research Instt , Vol. XXVI, p. 253.
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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