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________________ म. महावीर स्मृति-ग्रंथ 'काली चौदस' कहलाता है। इस दिन स्त्रिया पझान्न और मिष्टान्न बना कर भूत-प्रेतादेके कोपका शमन करने के लिये चढाती हैं और निकटके चाराई पर रस आती है। तीसग दिन अमावस इस त्यौहारका प्रमुख दिवस है। इस दिनहीं भ० महावारने मोक्ष-गमन किया और इन्द्रमति गीतमने कैवल्य- (-लसी) प्राप्त की थी। इस दिनहीं रातको जेनी महापूजा करत और दोपमालिका मनाळ हैं। अमावसके प्रातःही तीनों सम्प्रदायाक बना अपने २ मदिरा, उपाश्रयों अथवा स्थानकोम जाते हैं। वहां जो साधुमहाराज अथवा साध्वी देवां उपान्यत हात है, उनके मुखसे भ० महावारका जोवनवृत्तान्त सुनते हैं और सामायिक, गीत और भजन गाते है। मक्तवत्सल वहाँ उहर कर प्रोषध करते हैं। शेप अपने को लौट चाठ और वर्षभरके हिसाब-किताबका चिठा सैयार करते हैं। सायंकालकों व एक बामणको बुला कर शारदा-पूना करवाते हैं, क्योंकि जनॉमे ब्राह्मण अवमी प्राइितका काम करते है। जो अपनी पहिया एक चौकी पर रख देते हैं । ब्राह्मण आता है और पजमानके माथे पर टीका कर देता है और उनकी कलम और बहोके आदि पृष्टको चरच देता है। सब वह बहोक आदे पृष्ट पर गब्द 'श्री' ५, ७ मा ८ चार लिखता है । अब वही पर पुराने से पुराने सिकको रखते इ, ओ लभाका प्रतीक होता है। यह क्रियाही 'लक्ष्मीपूजा' है। वर्षभर यह सिक्का वडा सार-समालसे रखा जाता है। क्योंकि उसे धोभाग्यवर्धक माना जाता है। दूसरी दिवाली पर वहीं सिमा फिर पूजाके लिये कामम लिया जाता है। इस प्रकार किन्हीं जैन धरोम बड़े पुरान २ सिक मिलते हैं। वही पर एक पान, सुपारी, अक्षत आदेमी रखे जाते हैं। कपूर जला कर जैनी उनकी आरती करता है और सराको बहियों पर छिडक कर पूजा समाम करता है । तव पुरोहित और उपास्यत जना मिष्टान्न खावे ६} कई घटे वहिया खुलो रक्खी रहती हैं । उपरान्त जन उन्हें 'लक्ष-लाम, लक्ष-लाम' कहते हुये बन्द करके रख देते हैं । चौथा दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदाका नव-वर्षका पहला दिन माना जाता है। इस दिन जेन परस्पर एक दूसरेसे मिल कर बाभवादन करते हैं और अपने व्यापारक वर्षका प्रारम करते हैं। इसी दिन अपने मिलनेवालाको दिवाली-पूजनके मगलपन्न लिखते हैं। "१ १. सं० नोट- मूलतः दिवाली निर्वाण उत्सव है, परंतु इन्द्रभूति गौतम द्वारा केवल्यदिभूतिकी प्राप्तिके उपलक्षमें दिवालीको लक्ष्मी (धन) पूजाका स्याहारभी माना गया है। एक जैनक निकट सबसे बही विसात और महालक्ष्मी केवलजानकी प्राप्ति है। व्यवहारमें धन ही लक्ष्मी है। अतः व्यवहारस्त जैनों द्वारा अध्यात्मलक्ष्मीको गौण करके भतिक लक्ष्मोको पूजाका समावेश दिवाली पूजनमें किया जाना खामाविक है । उत्तर भारतमे सुजरातसे मिह रूपमें दिवाली मनाई जाती है। धनतेरस तो ठीक एक है। रूपमें मनाई जाती है, परंतु दूसरे दिनको जन 'काली चौदस नही कहते; बल्कि 'निर्वाण चौदन' कहते हैं। इस दिन सायकालको कुछ दीपक जलाकर घरके मुख्य द्वार पर रखा जाते है और उनको अर" 'सिटाल चढाते हैं। उनमेसें बढ़े दीपकको जलता हुआ घरमे वापस ले जाते है और उसे इस तरह समाल कर रखते है कि वह रात भर जलता रहै । इसे 'पमका दिया' कहते हैं। 'न० महावीरने यम अर्थात मृत्युको जीत लिया था। उस विषयका मवीक वह दीप है। अमावसके माता जैन नर-नारी मंदिराम जाफर महावीर निर्वाणपूजा करसे मोर घमश्रवण करते है। कोई 1 उपवासभी रखते है। मामला (आके पृष्ट पर देखो) ।।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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