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________________ तुम सफल आराधना........! (श्री ज्ञानचन्द्र अलया) तुम सफल आराधना, तुम गान पूरे। थक न जाए सृष्टि, तुम गति-दान पूरे !! जब मनुजता प्रस्थ थी, पशुता विकल, छा रहा था क्षिति-क्षितिज पर एक छल; उस विषम वातावरणको चीरते, तब तुम्हीं तो मुस्कराए थे, सवल! तुम धराके धर्म, युग-अभिमान पूरे !! तुम सफल आराधना, तुम गान पूरे। थक न जाए सृष्टि, तुम गति-दान पूरे 11 पुण्यकी जागी सुषुप्ता चेतना, संकुचित, सिमटी सलज्जा वेदना, मौन माया-मेघ-मद-मसिसे भरे ढर गए पलमें, नया दिनकर तना! पापके प्रति तुम सदा पाषाण पूरे! तुम सफल आराधना, तुम गान पूरे ! थक न जाए सृष्टि, तुम गति-दान पूरे!! आजभी तुम प्रेरणाके बिन्दुसे, या निरन्तर साधनाके सिन्धुसे! चिर-चमत्कृत मन-नमोंके बीचही; नव उदित निकलङ्क पूरे इन्दुसे! अन्य सव आधे कि तुम कल्याण परे। तुम सफल आराधना, तुम गान पूरे ! थक न जाए सृष्टि, तुम गति-दान पूरे !! ३७
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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