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________________ Ahimsā in Sino-Indian Culture. ___BY PROF. TAN YUN-SHAN (Director, Visva-Bharati Cheena-Bhavani and Cultural Representative of China in India) [प्रस्तुत लेसमें चीन के सांस्कृतिक प्रतिनिधि प्रोफेसर तान युन्शानने चीनको प्राचीन संस्कृतिम अहिंसाका दिग्दर्शन कराया है। उनका कहना है कि भारतीय और चीनी सस्कृतियोंका मुख्य लक्षण अहिंसाही है । संस्कृति समस्त मानव जीवनद्वाराही सिरजी जाती है । सस्कृति मानव समाजके अभ्युदयका मापदंड होने के साथही उसका पय प्रदर्शक भी है । संस्कृतिक कारयही मानव जीवन इतर जीवनसे विशेष और विशद ठहरता है। सस्कृतिसे ही मानव अपने जीवनका मूल्य और अर्थ समझता है और उससे वह अपना ध्येय प्राप्त करता है। उस ध्येय प्राप्तिमेंही गास्वत शान्ति, प्रेम, सुख और स्वातन्य है। इस अपेक्षा भारत और चीनकी सस्कृतियोंमें बहुत समानता है । चीनके प्राचीन बौद्ध विद्वानोंने अहिंसा शब्दका अनुवाद चीनी भाषामें "पु-इ" शब्दसे किया था अर्थात् किसीकी हिंसा न करना । उसका मीधा रूप सस्कृतमें 'मैत्री' और चीनी भाषामें 'जेन' होता है। इन दोनोंका भाव एकही है । यद्यपि चीनी लोग 'जेन' शब्दका व्यवहार करना अधिक पसन्द करते हैं। मैत्रीपूर्ण व्यवहार करनेके लिए अहिंसाकी साधना आवश्यक है। इसी लिए सखारके प्रत्येक बहे धर्ममें इस प्रकारके चारित्रनियम निर्धारित किए गए हैं। अहिंसा और सांस्कृतिका अनादि सम्बन्ध है। गांधीजीने कहा था कि सत्य और अहिंसा इतनेही प्राचीन है जितने कि ये पर्वतमालायें है। भारत के एत्रेय ब्राम्हण, ''शत्पथ ब्राह्मण' 'छादोग्य उपनिषद, ' 'वामन पुराण' और 'मनुस्मृति' जैसे प्राचीन शास्त्रोंमें अहिंसाका वर्णन मिलता है। इसी लिए 'महाभारत में अहिंसाको परम धर्म छहा है। गांधीजी भी यही कहते थे। किन्तु अहिसाका सदेश गम्भीर और वैज्ञानिक व्यवस्थाके रूपमें पहले २ जैन तीर्थकरों और उनमें भी सर्व अतिम तीर्थंकर महावीर वर्धमान द्वारा किया गया था। उनके वाद महात्मा बुद्धने भी अहिंसाका पचार किया । इस जमाने में महात्मा गाधी अहिंसाके प्रचारक हुए । चीनी लोग अहिंसाकी अपेक्षा 'मैत्री सूचक 'जेन शाब्दका अधिक प्रयोग करते है। चीनी महात्मा फाचिन सब मानवोंसे प्रेम करना और अपने अन्तर पर अधिकार करना "जेन से अभिप्रेत करते हैं, इनका कहना है कि किसी दूसरेके प्रति ऐसा व्पवहार मत करो जैसा तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ न करें। एक बार उन्होंने कहा कि गुरव, उदारता, ईमानदारी, उत्साह और दयाका व्यवहारही न है । म. कन्फ्युशस कहते थे कि जेनका पालक परम धर्मात्मा होता है वह सबसे, द्वेष नहीं, प्रेम करता है। चीनका ईचिंग नामक ग्रंय उनके लिये वेद तुल्य है उसमें लिखा है कि मैत्री द्वाराही मानवकी उन्नति होती है । लोक और परलोकमें जीवन सारभूत है और महात्माका पद एक महान रन है। उसकी रक्षा जेन (मैत्री) द्वारा होती है । सूचिंग नामक प्रथमें लिखा है कि मानवोंमें कोई स्थिर प्रेम नहीं है । अत जेनके गुणोंका विचार करना ठीक है। चुगयुग नामक अन्य प्रयका उपदेश है कि मानवताका मुख्य लक्षण जेन अर्थात मैत्री है । और उसका व्यवहारिक रूप मानवोंसे
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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