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________________ श्री प्रेमनारायणजी टंडन। २७५ प्रमापने अपने पूर्ववर्ती लेखकोको भलीभाँति आच्छादित कर दिया। इस कथनके सत्यासत्यकी विवेचनाके लिएही यह स्थान उपयुक्त नहीं है, परतु इतना निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि प्राचीन रहंदी हिंदीके संवधर्म, परिवर्तित परिस्थिति के कारण, यह कथन विशेष महत्व का नहीं है। अस्तु । हिंदी गद्यके अभावके निम्न लिखित कारण बताए गए है -- (क) हिंदू राजत्वकालमें पाली और प्राकृतका विकास होने पर भी सस्कृतका पर्याप्त प्रचार और मान था, जिससे नवविकसित हिंदीके साहित्यिकारो की साहित्य-रचनाके लिए ससम्मान यथोचित सुविधाएँ प्राप्त न हो सकी ।३३ यही नहीं, इसी कारण तत्कालीन हिंदी गद्यके उपमित प्रयोका अभी तक पता नहीं लग सका है । (ख) हिदीके प्रादुर्भावके समय हिंदुओंके जीवनका क्षेत्र संकुचित हो गया था। वे उन दशाओंकी ओर ध्यान ही न दे सके थे जो गचके स्वतन्त्र विकासमें सहायक होती हैं । १५ (ग) साहित्यके प्रचार-संबंधी साधन उस समय सुलभ न थे । राजा महाराजाओंक आश्रयसे पदों पहले ही वचित थी, प्रचार साधनों के अभावने जनताका मी पूर्ण सहयोग उसे न प्राप्त होने दिया । यहाँ तक कि गद्यमें लिखी कथा-कहानियाँ भी अधिक प्रचलित न हो सकी। निसंदेह प्रचार साधनको मुलमता गद्यके विकासमें बड़ी सहायक होती है । १६ (घ) हिंदी भाषा भाषी प्रदेशीय शासकोंने उसके पठन-पाठनके लिए, ऐसे विद्यालय नहीं स्थापित किये जिनमें साहित्यिक आलोचना प्रत्यालोचना द्वारा गद्यकी उन्नतिके लिए प्रयत्न किया (ड) उक समी कारण एक प्रकारसे गौण थे, कारण, उनका प्रभाष गद्य और पद्य दोनो प्रकार की रचनाओं पर पडना चाहिए था और पड़ा भी । अत. गद्यके अभावका प्रधान कारण साहित्यकारों की वह सकचित मनोति थी जो केवल पद्य रचना के लिए ही उन्हें प्रेरित करती थी और इतने ही पूर्ण सनष्ट भी हो जाने देती थी। इसी संकुचित दृष्टिकोणने ही स्वात.सुखाय साहित्य रचना में प्रवृत्त होनेवाले व्यक्तियोंको भी गद्यका उपेशक बना दिया और उसी मनोवृत्तिने अधिकांश शासकोंमें मी गद्य के प्रति विशेष आकर्षण न रहने दिया ! १३, पृष्ट-१२६, 'हिंदी भाषा और साहित्यका विकास'-अयोध्यासिंह उपाध्याय । १४ पृट-१५१, ना. म. पत्रिका, माग ५, में प्रकाशित राधाकृष्णदासका लेख। १५. पृष्ट-६२६, हिंदी भाषा और साहित्यका विकास'-अयोध्यासिंह उपाध्याय । १६. पृट-८३१, History of Bengali Language and Literature में Dinesh Chand Sen ने बंगला गद्यको वर्तमान उपसिके अनेक कारणोंगे एक प्रचार साधनकी सुलभताकोभी माना है। १५, पृ-६२१, हिंदी भाषा और साहित्यका विकास'- अयोध्यासिंह उपाध्याय । 14 पृट-, 'The Tenth Report on the Search of Hindi NMS for the year 1917-18-19 के संपादक रायबहादर हीरालालने लिसा है-la older days a wrter was Dothing if he could not write in verse
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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