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________________ 'श्री स्वन" २५१ पीन बीरके प्रतिपादित'उपदेशों द्वारा नारी जातिने अपने अधिकार प्राप्त किये । आदि पुराणमें बताया है:- · · । । पुत्रश्च सविमागाहोः समं पुत्रैः समांशकैः । " आदिपुराण पर्व ३२ यह उस समयकी बात है जबकि भ० ऋषमदेवने कर्म भूमीकी सृष्टि जनताके समक्ष रखी थी। उन्होंने कहा था कि पुत्रोंकी भातिही पुत्रियोंकोमी समभाग बाटनी चाहिये 1 आदिनाथ भगवानने जिस तरह अपने पुत्रोंको शिक्षा दीक्षा दीयो उनी प्रकार अपनी दोनों पुत्री, आम्ही सुंदरीकोमी दी थी। इनके समगशरणमें आर्यिकाओं में दोनो प्रथम मानी जातीथीं। इसके आगे : द्वादशांग घरो जातः क्षिप्रं मेधेश्वरी गणी। एकादशांगभृञ्जावाऽऽर्यिकापि सुलोचना ॥ . हरिवंश पुराण सर्ग १२ । यानी मेधेश्वर (जयकुमार) द्वादशागका ज्ञाता गणवर हुआ और सुलोचना ग्यारह अंगकीधारक आर्यिका हुई। इसका तो यही मतलब हुआ कि सृष्टिसेही स्त्रियोंको समनाधिकार प्राप्त है। हनुमान (श्रीशैल) की माता जब गर्भवती थी तब उसकी सासने उसे झूठा कलंक लगा कर परसे निकाल दिया था ऐसी अवस्थामें शीलवती पतिपरायणा अजना जगलके अन्दर एक गुफामें भगवानकी मर्ति विराजमान कर अपनी सखी वसवमालोके साथ पूजन प्रक्षाल करती थीं। .... भ० वीरकी दृष्टिमें स्त्री और पुरुष दोनोंही समान थे और दोनोंकेही अधिकारोंके महत्वको समझते थे। उनके प्रतिपादित धर्ममें स्त्री पुरुषों को समानाधिकार प्राप्त था । जो आत्मा पुरुषोंमें थी वही, आत्मा, नारी जातिम मानते थे। अपने त्याग, तपस्या, सयम, आत्मसाधना द्वारा उच्च गति प्राप्त कर सकी है। . . . . . . . त्रियों का दर्जा सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रमेंमी समान है। स्त्रियोंको अघोंगिनी शब्दसे संबोधित किया जाता है जबतक पुरुष अपने माघे अगको टुकराता रहेगा तब तक उसे किसीमी क्षेत्रमें सफलता नहीं मिल सकेगी और न वह अपने जीवनस्तरको ऊचा उठा सकेगा। यह कहाका न्याय है कि पुरुष अन्याय और अत्याचार करते हुवे निर्दोष कहा जाये ! और जो निदोंप अवलायें हैं उन्हें पददलिता पदच्युता बनाया जाये । मानवोके इस भूल मरे सिद्धान्तका विश्ववद्य वीरने विरोध किया। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि जबतक महिला समाज अपने अधिकार माल नहीं कर लेती तब तक समाज, देश, धर्म, राज्यशासन आदि अधूरे रह कर गतमही गिरने चले जावेगें । स्त्री राज्यसिंहासन पर अपने पतिके साथ कधासे कथा भिडा कर बैठती आयी है।. अर्धासन निविष्टे च मताशिष्ट च भूभुजः : -क्षत्रचूडामणि (बादिराज)
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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