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________________ The Tree of Life and other group symbols in Jaina Art BY ASOKAKURRAR BHATTACHARYA, M. A. [श्री प्रो० अशोककुमार भट्टाचार्यजीने जन कलाका विशेष अध्ययन किया है। इस लेसमें मापने जैन कलागत सर्कितिक चिन्होंका सुंदर विवेचन किया है। आप लिखते हैं कि हिन्दू, मौद्ध और जैन कला विज्ञान, जीवन रक्ष सकेतका विश्लेषण अन्य चिन्होंके अध्ययनमें उपयोगी है। त्रिशूल चिन्ह निरीह जनक्षा नहीं है । यौद्ध मार शाम भी यह मिलता है। मोहनजोडरोके पुरातालमी इसके दर्शन होते हैं। कडफिस दिन के शैव सिधा परमी त्रिसूल बना हुभा था। जैन फलामें त्रिशूल एक दिकपाल देवताका चिन्द माना गया है । त्रिशलकी मान्यता जैन और बौद्धोंके निष्ट एक पवित्र वस्त रहा है और जनोंके अमूर्तिमय धार्मिक मान्यताका मूल आधारमी | ककाली टौलासे प्राप्त जिनमतिके आसनमें सन्मुख त्रिशूल पर धर्मचक अंकित है। बौद्धोंके निकटभी धर्मवक मान्य है। भारतीय कला विज्ञानका सभी सम्प्रदायोंने समान उपयोग किया है। भारतमें कलाको साम्प्रदायिक रूप प्राप्त नहीं था। त्रिशूल या निरल चिन्ह जन कलामें सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानसम्परबानरूप रत्न त्रय धर्मका द्योतक है । यौद्धोंमें उसका भाव बुद्ध-धर्म-सघसे है। ॐ जैन धर्ममें पांच अक्षरों अ-बा-ट-ऊ-म से बना, जो 'पचपरमेष्टी' के ज्ञापक है। चक्र वैष्णव महमें भी मान्य है । जैन लेखक टकर फेसने शासनदेवता चक्रेश्वरीके पारकरमेंमी धर्मचक्रका होना भावश्यक बताया है। चक्रवर्तीके रत्नोममी एक चक्र रत्न होता है। कंकाली टोला मथुराके कुषाणकालके जन आयागपटॉमें धर्मचक 'मलित है। जैनोंमें सप्टमंगळद्रव्य विशेष महत्वपूर्ण है, जो तीर्थकरकी मूर्तियों के साथ होते हैं। पर्वमान सारफे 'आचार दिनकर' में इनका वर्णन मिलता है । अष्टमंगल द्रव्योम पहला दर्पण है। इससे भाव यह है कि जिनेन्द्रका मादर्श भरके हृदयमें दर्पणवत् प्रतिविम्बित होगया है। दूसरा चिन्ह भद्रासन है जिससे स्पष्ट है कि भक्त जिनेन्द्र-चरणों, की निकटना पा रहा है। तीसरा चिन्ह बर्द्धमान सम्पुट,इस बातका द्योतक है कि जिनेन्द्र महा। धारको छत्रछायामें मतका सौभाग्य प्रस्फुटित हो रहा है। चौथा चिन्ह पूर्णकलश है, जो यह पगट करता है कि त्रिलोक जिनेन्द्रही सर्वेच्छापूरक हैं । हिन्दू धर्मममी फला मान्य है। कलश . जिनेन्द्रका प्रतीक है-इसीलिये उस पर दो नेत्र बनाने का रिवाज है। शियक सागरमथन मसंगममी . कलश मिलता है। संभव है जैननि वहाँसे इसे लिया हो। ( मो. सा० को यह ध्यानमें रखनेको वात है कि जैन धर्म में अष्टमगढ द्रव्य मन्त्रिम चैत्योममी माने है। अतएव चे जैनकी निजी वस्तु ठहरते है। --सं.) पाचवा चिन्ह श्रीवास है जो रेखाङ्कण द्वारा चतुर्दली सुमनाकार बताया जाता है।" सुमनका श्वेत और पवित्ररूप ठीकही केवलज्ञानका द्योतक हैं । वैष्णवों में भी यह विष्णुमूर्तिका चिन्ह माना गया हैं। छठा चिन्ह मीनयुगलका है। मोहनजोडरोके,मीन लोगोंका कुल, चिन्हमी मीनका था। वहाके ज्योतिषचक्रमेभी मीन बना हुआ है। मोहनजोडरोके लोग मीनको ईश्वर मान कर पूजते थे। मीनाक्षी औरत देवता शिवका रूप था, ऐसा माना गया है। कामदेवका सम्बन्धमी मानसे उपरान्त कालमें स्थापा गया है। विष्णुका मत्स्यावतार प्रसिद्ध है। सजन और उत्पत्तिके ... समेत रूपममी मोनको मान्यता लोगोंमें है। बंगालमें नववधू और परको घरमें घुसतेही हाथमें રર૭
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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