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________________ १८२ भ० महावीर स्मृति मंध। हद देखती हैं तो वे स्वयंभी उसी प्रकार तप मत ले लेती हैं। चोर प्रमवभी अपने पिताको आधा कर तपन्त ले लेता है। जब अतमें निर्वाण पद प्राप्त करते हैं। हेमचद्रकी शति संस्कृत पद्यम है। कथामें कोई अतर नहीं मिलते । आख्यायिकाओंझी सुदर वष्टि हेमचद्रने बहुत आकर्षक की है। उपर्युक्त तीन जवू चरित्र तीन भाषाओंमें है, तीन से दोमें कया कहना प्रधान उद्देश्य लगता है, वीरको अपभ्रश कृतिमें काव्य सृष्टिकी ओरभी प्रयास है। अपशके एक अन्य जरूचरितकामी उल्लेख बडौदा प्रकाशित पत्तनत्थ भडारकी प्रथचीमें मिलता है (पृ० २७१) विभिन्न लेखकों द्वारा प्रस्तुत इस तपस्वी चरित्र के विकासका अध्ययन मनोरजक हो सकता है । जबके आदर्श चरित्र की तुलना ब्राह्मण सप्रदायमें किससे हो सकती है, दृढना आसान नहीं है। जैन आदर्शवादमें रगा यह चरित्र अपने आपमें अनुपम है। - -- जिनवाणी-वैशिष्टय। कुमति कुरंगनिको केहरि समान मानी, ____ माते इम' मार्य अष्टापद हसरत है। दारिद निदाघ दार प्रावृष्टः प्रचंड धार, कुनै-गिरि-पंढ खंड विजु पहरात है । आतभरसीको है सुधारसको कुछ वृन्द, सम्यक महीरहको भूल छहराव है। सकल समाज शिवराजको भजन जाम, ऐसो जैन-चैनको पताका फहराव है। कविवर वृन्दावनदासजी १. हाथी. २. प्रीष्मऋतु. ३. वर्षा. १. वृक्षका.
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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