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________________ १८० भ० महावीर स्मृति-ग्रंथ । का सरस ढंग मिलता है। केवल कुछ छोटे छोटे वाक्यों द्वाराही रचयिताने मार्मिक माननीय रसटे पूर्ण चित्र उपस्थित किये हैं। जनंतर भारतीय साहित्यम कारा जाता है कि लमणकी त्री उर्मिला कान्यकी उपेक्षिता रही। उनके त्याग, तपस्या, मुक पतिनिठासे प्रभावित शेर उनके चरित्रको कान्यका उपकरण बनाया गया है। जिस कांगरसे तपस्विनी नागिलका चरित्र वसुदेवहिण्डिमें प्रस्तुत किया गया है वह पाठकके हृदयमें समवेदना और करुण सहानुभूति उत्पन्न कर देता है। निस समय विवाहमा धार्मिक पक्षहीं सपन्न हो पाया था और भवदेव एक सामाजिक प्रयाका नावधूको माभूषण पहिनाने के रूपमें पालन कर रहा था उसी समय उसका बड़ा भाई भवदेव उठे बुलाता है । प्रेमपाशको एक और छोडकर माईकी माशातुल बह शिष्टाचारवश दीक्षा ले लेता है। नववधू प्रतीक्षा करती हुई अतमें तपस्विनी हो जाती है। भवदेवके हदयको प्रेमवासना मिटती नहीं, वह प्रेमसे आकर्षित हुआ फिर नागिलको देखने जाता है किन्तु नागिल प्रेम दोल्यसे बहुत कमर उठ चुकी थी और वह अपने पतिकोमी उचित प्रबोध देती है। साधारण विश्वास ऐसा बन गया है कि जैन साहित्यमें शुष्कता और वैराग्य है, सो मानके प्रति उदासीनता है, नागिल जैसी साध्वी स्त्रियोंके करुण और आदर्श चित्र इसके प्रतिकार हैं। भक्देवकी इस जन्मको दुर्बलता अगले जन्म दूर हो जाती है। राजप्रासादमें अनेक प्रकारके विलास और वैभवके साधनोंमें रहता हुआभी वह 'जलमें कमलवत् व्यवहार करता है। सब दुर्बलताओंसे ऊपर उठ कर वह दृढ आचरणवाला हा जाता है और तभी वह जबूके रूपसे अवतरित होता है। ब्रह्मचर्य और निवृत्तिका जडू जैसे अन्य आदर्श कम मिलेंगे। वसुदेवहिण्डिकी कथा गद्यमे है, उसके रचयिताने प्रत्यक्ष रूपसे अपने उत्कृष्ट कथाचरित्रोंकी प्रथमा नहीं की है लेकिन इस प्रकार न्यजनात्मक ढंगसे पात्रोंका चित्रण किया है कि अपने आप उनकी विशेषताएँ स्पष्ट हो जाती है। जबूके चरित्र में काव्य-विस्तारके लिए अनुकूल क्षेत्र देखकर अपभ्रंशमें वीर कविने (स. १०७६ वि०)जबूस्वामी चरितकी रचना की है। जब चरितका पर्याप्त विस्तार इस कृतिम किया गया है। रचयिताने स्वयं अपनी कृतिको श्रृंगार-वीर कास्य कहा है। कृति ग्यारह सन्धियोंमें विमयी है । कथाका क्रम विल्कुल स्वतत्र है। मगलाचरण, सज्जन-दुर्जन स्मरण आदिको प्रस्तावनाके रूपम रख कर कृतिका प्रारम्भ महाकाव्य के समान किया है । दूसरी संधिसे कथाका प्रारम्भ किया गया है । जबूक पूर्वमोका वर्णन किया गया है। मवदेवकी कथाका रूप वसुदेव हिण्डिकेही समान है। पिता माता नामोमें अन्तर है-आर्यक और रेवतीके स्थान पर श्रुतकठ और सोमशर्मा नाम हैं । श्रुतकंडकी कक्षण मृत्युका वर्णन वडा हृदयद्रावक है । नागबम (नागिल) का चित्र उसी प्रकार करुण यहाँभी है। यया उसकी क्षीणकाय दशाका चित्रण इस प्रकार है : वा एक खणंतरे विय कोणतार दिट्ट नियम वय-खिन्न-उणु। अगुहाइ विरुवही सूलि गिरूवहो सुश्च कवोलहे तसह जगु ।। २.१६ १. शग इसी सधि पियाका नाम आर्यब मिलता है-जब मागिलसे देवमदिरस भवदेव उसके विश्यमें पूछता है। -
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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