SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ म० महावीर स्मृति ग्रंथ | " समय " कहलाता है। ऐसे अनत समय में काल (व्यवहार) विभक्त है। जिस प्रकार भारकां माप " परमाणु " और आकाशका " प्रदेश " है, उसी तरह " समय }} कालका माप बिंदु है। सबसे बड़े कालका प्रमाण महाकल्प है, जो उत्सर्पिणी-अवसिर्पिणीके समयका जोट है : ४१६४५२६१०३०८३०५१७७७४९५२१९२००००[ कुछ ७७ अ ] और सबसे छोटा परिमाण " समय " है । अन्तमें कालद्रव्यके अस्तित्वके विपयभी कई शकाओंका समाधान आचार्यों ने किया है। कालके अस्तित्व साधनके लिये अच्छे सूक्ष्म तर्क रखे हैं । जैसे प्रतिक्षणमुत्पादव्यय ध्रौव्यैकरूपः परिणामः सहकारि कारण सद्भावे द्रष्टः । यस्तु सहकारी कारणं सकालः [१०] 40444099 काल द्रव्यके बिना जगत्का विकास रुक जावेगा वस्तुओं की उत्पत्ति तथा विनाश समयके अभावमै, आश्चर्यजनक लेम्पके अभाव में अलादीन के शानदार महलके समान होने लगेगा | यहा यहमी ध्यान रखना चाहिये कि न्याय वैशिषिक दर्शनोंके अतिरिक्त किसीभी भारतीय दर्शन में कालका विशेष वर्णन नहीं किया गया है जितना जैनमतम्, परंतु ये दर्शन जैन मतके सिर्फ व्यवहार काल तकड़ी रह गये हैं आगे नहीं बढ सके हैं। आधुनिक विज्ञान " समय " के कार्यकलापके आधार पर उसे द्रव्य रूपसे माननेका अनुभव करने लगा है पर उसने अभी तक सिद्धान्त रूपमें उसे स्वीकार नहीं किया है। रेडिंग्टन का यह कथन Time is more physical reality than matter तथा नशा काय वाक्य: These four elements [space, matter, time and medium of motion] are all separate in our minds. We cannot imagine that one of them could depend on another or be converted into another] f ---- उपर्युक्त निर्देशमें प्रमाण है । भारतीय प्रोफेसर एन आर सेनभी इसी मदमें है, काल द्रन्य के अस्तित्व के विषयमें, जैनमतसे ठीक मिलता हुआ, तर्क फ्रेंच दार्शनिक वर्गसननेभी रखा है । उनके अनुसारमी " जगतके विकास काल एक खास कारण है। बिना कालके परीणमन और परीवर्तन कुछभी नहीं हो सकते " फलतः " काल " " द्रव्य " है । - काल द्रव्यके दो मेदोको वैज्ञानिक स्वीकार करनेही लगे हैं Whatever may be the time defuse, [ व्यवहार] the Astronomer royal's time is de facto ( निश्चय ).:--Eddington. एक प्रदेशी होनेसेही काल द्रन्यमें भौज्यत्व है, इसेमी वर्गसन स्वीकार करता है । The continuity of time is due to the spatialisation or (absence of extensive maggnitude) of the durational How "कालकर ऊर्ध्व-मचम (mono-dimensiona
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy