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________________ सन्देश (श्रीमान् गवर्नर महोदय विहार प्रान्त) श्रीमान् माननीय एम. एस. अणे महोदय, ( विहार प्रान्तके गवर्नर ) ने निम्नलिखित सन्देश अमेजीमें लिखकर भेजनेका अनुग्रह किया है। श्री गवर्नर महोदयकी इस कृपाके लिये हम उनके आभारी हैं । आपने अपने संदेशमें बताया है कि महापुरुषोंकी आध्यात्मिक प्रेरणासेही मानव अपनी उन्नति करता आया है। ऐसे महापुरुष किसी एक समय अथवा एक देशमेंही नहीं जन्मते बल्कि वे प्रत्येक समय और प्रत्येक देशमें जन्म लेते है। उन सबका कार्य एक यही होता है कि वे मानवको उसका कर्तव्य सुझाएं, जिससे वह मुखी हो सके । इन महापुरुषोंको लोग अवतार अथवा आचार्य कह कर पुकारते हैं। भगवान महावीर मानव समाजके ऐसे महान शिक्षकोंमेसे एक थे। उन्होंने अहिंसा और दयाका उपदेश दिया था, जिससे लोग भोजन एवं देवा में पशुपक्षियोंकी हिंसा करना मले थे। किन्तु उन्होंने अहिंसा सिद्धान्तको उससेभी बहुतही आगे बढाया और ऐसे चारित्र-नियम निर्माण किये कि कोईभी मानव एक कीडे तककी हिंसा मनवचनकायसे न करे। म. महावीरकी शिक्षामें अहिंसा और संयमके सिद्धातोंका विकास चरम सीमाको प्राप्त हुआ था। आज बहुतसे जैनी बडे २ व्यापारी हैं और उद्योगवन्धा करते हैं। उनमें कोई कोई चींटियोको शकर बटाते हुएभी मिलते हैं। किन्तु उन्हीं से कभी कभी कोई जैनी अपने दैनिक व्यवहारमें अन्याय करते और अनुचित लाभ उठानेकी त्रुटि करते हैं। वे धमकी शाब्दिक पालना करते हैंउसके भावको ग्रहण नहीं करते, किन्तु भावहीन द्रव्यपालना तो पाखंडको जन्म देती है, जो हिंसाकाही दूसरा रूप है । महावीर जैसे महापुरुषोंने मानवके दैनिक जीवनको धर्मसे अनुप्राशित करनेके लिएही इन सिद्धान्तोंका प्रचार किया था। दैनिक व्यवहार और धर्मसिद्धान्त साथ २ चलना चाहिए वरन् मानव जाति एक भयंकर चक्रमें फस जायगी। यह समय है जवकि मानवोंको महावीर जैसे आचार्योंकी शिक्षाओं और कार्योंकी याद दिलाई जाय ! आज यू एन. ओ. जैसी अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं का जन्म वडे २ सिद्धान्तोंके नामपर हुआ है; किन्तु व्यवहारमें उनके सदस्य अपने स्वार्यके कारण उन सिद्धान्तोंपर दृढ नहीं रहते । भगवान महावीरके अनुयायी मानव समाजकी वही सेवा करेंगे यदि वे ऐसी संस्थाको जन्म देनमें सफल हो जो अहिंसा, सत्य और संपम जैसे सुन्दर चारित्रनीयमोंका पाटन दृढतासे मानव जीवनमें करा सके। क्या जैनी गवर्नर महोदपके इस सामयिक चेतावनीसे सुबोध लेंगे। सं०
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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