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________________ [ ५९ ] आवरणका मेद न कर हमारा समुदाय प्रमुके इस आशयको सफल करेगा । C .. जिस समय आठवां चतुर्थ मास पूरा करके प्रभु म्लेच्छ भगवा अनार्य भूमि विचरे उस समय आर्य और अनार्यका भेद मात्र आचरण और सभ्यताके धोरण पर था। आर्य और मनाये ये जो विशिष्ट वर्ग वैदिक युगमें थे वे प्रायः महाभारतकी लड़ाई बाद लुप्त हो गये थे मात्र नामावशेषरूपमें ही रह गये थे । आर्यऔर अनार्य इन दोनोंका विरोधी एक नया 'म्लेच्छ' शब्द उदवहारमें आया था । जाति और वर्ग भेद का नाश होनेसे गुण और संस्कार में उपस्थित भिन्नता आगे आ चुकी थी और वर्गजन्य अभिमान टूटकर गुण ही उच्चताका प्रमाण माना जाने लगा था । तो मी उस समयके ब्राह्मण जाति और वर्णजन्य विशिष्टताको कायम रखने के लिये यत्न करते थे । परन्तु कृष्ण और पांडवों जैसे उदार दृष्टिवाले पुरुषोंके प्रतापसे इस संकीर्ण भावनाको दबकर बहुत समय तक रहना पड़ा था। नत्र ब्राह्मणोंकी स्थिति संरक्षण रुक. {Oorthodox Tendoncies) जोरमें आती तंत्र वर्णके भेदको आगे करनेको वे नहीं चूकते थे तो भी मनुस्मृतिकार रूढ़ि संरक्षकको भी आर्य और अनार्यके कृत्रिम भेदपर ढांक पीछेड़ा करनेके वचन* लिख न पड़े। इसी परसे सिद्ध हो जाता है कि जाति और वर्गजन्यके भेदपरसे जनमंडलकी भावना मंद होती जाती थी । 7 * जातो नार्यामनार्याया भार्यादार्यो भनेंद् गुणैः । अर्थात् - आर्य और अनार्य स्त्रीके उदरसे प्राप्त संतति भी गुणमें आर्य ही है।
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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