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________________ [...] whóm Gautam Buddha had a religion controversy अर्थात्:-आनीवकों के इतिहासमेंसे हमें एक नानने योग्य बात मिलती है । जीवदया मात्र एकला बुद्धका ही सिद्धान्त नहीं मा परन्तु भाजीवकों और निग्रन्थों (जनों) का भी यही सिद्धान्त था। अक्सर नियम इन सबके साधारण थे, मात्र वृतान्त और आख्यामें ही अन्तर था। आजीवक लोग शरीरसे लग्न रहते थे भौर बहुत तपश्चर्या करते थे। हमें इतिहाससे मालूम होता है कि आजीवकः संप्रदाय बुद्धके वक्तमें एक प्रभाविक संप्रदाय था। मंसली गोशाला उनका नेता था और उसके साथ गौतमबुद्धको धार्मिक झगडेमें उतरना पड़ा था। वर्तमान इतिहास भन्वेषण परसे मालूम होसकता है कि गोशाला एक प्रवर्तक था। परन्तु किसी कारण क्शात् महावीर प्रभुके साथ मतभेद होगया अतएव वह पीछेसे उनका विरोधी होगया और इस मतमेदसे उस समयके महावीरके अनुयायीओंमें गोशालाके प्रति विरोधताका रंग लग गया होना चाहिये और यही रंग सांप्रदायिक परम्परासे क्रमगत होगया होगा और आखिरमें जव जैन सिद्धान्त लेखालंढ हुए तब उनमें इसको स्थान मिल गया होगा। .. जब प्रमुने दीक्षा लेने पश्चात् आठ चातुर्थ पूर्ण किये और .आठवा चतुर्थं मास भी राजग्रहीमें ही पूर्ण किया।पश्चात् प्रमुने अपनी परिचित भूमिकाका त्याग ही भच्छा समझा अतएव वे मित्रो, स्नेहीजनों और नित्य परिचानमें आनेवाले मनुष्योंके संसर्ग:रहित प्रदेशमें विचरने लगे। अब तक प्रमु:जहां २ विचरे थे वे सर्व प्रदेश उत्तम आचार विचारवाले मनुष्योंसे भरे.थे। स्वयम् प्रमु एक राजपुत्र थे उन्होंने
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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