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________________ [१३] मियांको अनेक संकट उठाने पड़ते हैं इसके अनेक ज्वलंत उदाहरण. हम सुनते आये हैं और सदा सुनते हैं ।बाल जीवोंके प्रबोधनार्थ अनेक उत्तम ग्रन्थकारोंने 'उपमिति भव प्रपंच कथा, मोह रानाका रास' आदि रूपक ग्रन्थोंकी रचना कर केवल यही सिद्ध क्रिया है कि मुमुक्षुके मार्गमें मोह राजाके सुभट सरासर विघ्न पटकते ही रहते हैं, जिन दर्शनोंने ईश्वरको सृष्टिका कर्ता माना है वे भी इस वातको प्रभु अपने भक्तोंकी जांच करता है, इस रूपमें कहते हैं कोई इससे रक्तबीज और कोई Deweller on the threshlol कहते हैं। किम् बहुना परमात्माके महाराज्यकी और पर्यान करनेवावाले महात्माओंको संकटपर संकट उठाने पड़ते हैं । परन्तु जिन आत्मपर्याय पुरुषोंने देहके ममत्व भावका सर्वोश त्याग कर दिया है ये संकट जैसे हमारे प्राकृत हप्टिको सत्य और गंभीर जान पड़ते हैं वैसे नहीं मालूम पड़ते । जिस स्थितिका ज्ञान हमें मात्र हमारे श स्त्रोंकी वाणीद्वारा ही होता है उसी स्थितिका ये महात्मा परोक्ष अनुभव करते हैं। देह और दैहिक धर्म इनका आत्माके साथ न कभी कुछ सम्बन्ध हुआ है न होता है और ना होगा इस प्रकारका निश्चय उनके प्रत्येक रोम २ में व्याप्त रहता है इसलिये उन्हें इसमें लेशमात्र भी शंका नहीं रहती। जितने अंशमें दैहिक ममत्वभाव हममें बना रहता है उतने ही अंशमें उसके सुख दुःख हमारी आत्मापर अपना प्रभाव डालते हैं और यही कारण है कि शास्त्रकारोंने वैदनीय और मोहनीय कमकी प्रकृतिको मिन्नर बताई हैं। जितने अंशमें मोहनीय कर्मकी प्रकृतिका प्राबल्य होता है उतने ही अंशमें वेदनीय कर्म आत्मा--
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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