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________________ [७] आग्रहको स्वीकार करो।" दयामय प्रमुने माताकी इस स्नेह भावनाको मान देकर विवाह करनकी हामी भरी। देवीने प्रसन्न होकर यशोदा नामकी रानपुत्रीके साथ उनका विवाह कर दिया । माता पिताको इस जोड़े के दर्शनसे परम संतोप हुआ यद्यपि शरीरसे प्रमु गृहस्थी एवं संसारी थे परन्तु उनका हृदय सदा जंगलकी ओर रहता था । उदासीन और अरस्थ भावसे वे उदयमान भोगका निर्वहन करते थे। जिन महात्माओंका हृदय भोग और योग इन दोनों अवस्थाओंमें मध्यस्थ रह सकता है उनका वैराग्य संसारके प्रति द्वेपसे अथवा निराशासे उद्भविन नहीं होता। परन्तु वह स्थितिके यथार्थ दर्शनमेंस उत्पन्न होता है व इस संसा में वस्तु) जल कमलबत् अलिप्त भावसे र-ते हैं । उदयमान कर्म प्रकृतियोंके भोगोंको शान्निसे सहन कर उनकी निर्जरा करना और रागद्वेषके उत्तेनक कारणोंसे परिवेष्ठित रहने पर भी स्थित प्रज्ञ रहना ऐसे ही महात्माओंके कठिन वृत होते हैं। प्रमु भी अपने ललकी अवस्था इस तरहसे विताते थे। लसके फलरूप उन्हे प्रियदर्शना नामकी पुत्री जिसका विवाह योग्य वयमें जमाली राजकुमारके साथ हुआ था। ___अठाईस वर्षकी आयुमें प्रमुके मातापिताका स्वर्गवास हो गया। संसारका संसारत्व द्वन्यके उत्पाद और व्ययमें ही समाया हुआहै। इस बातको अच्छी तरह समझनेवाले वर्द्धमान प्रमु इस खेदजनक प्रसंगसे व्याकुल न होकर अपने बड़े भाई नंदीवर्द्धनको इस संसारकी विनश्वरताका आश्वासन दिया। नंदीवर्द्धनने वीर प्रभुका राजमुकट धारण करनेकी प्रार्थना की परन्तु प्रमुने उसे स्वीकार न्हीं किया। तत्पश्चात् नंधीवर्द्धन राज्य सिंहासन पर बैठे । वीर प्रमुने उनसे
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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