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________________ raru arr र वीकार पूज्यपाद श्रीमदः गणाधीश्वर त्रिलोक्यसागरजी महाराजा : 5. " आपश्रीने हिन्दी साहित्यकी जो सेवा की है। और वर्षों तक, : मरुधर देशमें विहार करके आपश्रीने जैन, हिन्दी साहित्यको. उन्नतदशापर लाने के लिये अनेक प्रयास किये थे। इतना ही नहीं परन्तु आप स्वयम् उपदेश भी हिन्दीमें ही देते थे। अलावा इसके आप भनेक तकलिफोंको सहन करके मरुधर देशका उद्धार करनेके लिये इसी-देशमें सतत् विहार करते थे। यद्यपि इस समय आपश्री द्रव्यरूपसे इस संसार में विद्यमान नहीं है परन्तु भावरूप में आपश्री' मरुधर देशवासियोंके हृदयमें विद्यमान रहेंगे। इन्हीं गुणोंसे आकर्पित होकर 'महावीर जीवन विस्तार' नामक पुस्तक, आपश्रीके पस्तक आपश्रीके, करकमलोमें समर्पण करते कार्यकर्त्तागण हिन्दी, संवर्धिनी समिति ___ और . . श्री ज्ञानप्रसारकंमडल, सिरोही!
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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