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________________ [१५] प्रमुने देशकी सादी भाषामें ही देशना दी और सत्यके प्रभावको सहनमें ही जनहृदयमें अंकित किया और आत्मधर्मके स्वरूपको उसके गौरव स्थानपर प्रतिष्ठीत किया लोगोंको बहुत समयके मोह निद्रामेंसे जगाये । प्रभु यह अच्छी तरह जानते थे कि समाजपर सच्ची अतर ब्राह्मणोद्वारा ही हो सके.गी कारण कि उस जमानेमें उनका जोर प्रबल था इससे उन्होंने अपने प्रभावका प्रथम उपयोग उस समयके मुख्य और विद्वान ब्रामणोको अपने पक्षमें लेनेके लिये किया । जैन ग्रन्थोमें इन्द्रमूति अग्नभूति आदि सुविख्यात अगीयारे ब्राह्मणोने प्रभुकं आगे दीक्षा लेनेके जो हकीकत अस्तव्यस्त आकारमें आजतक मौजूद है वह इसी बातका समर्थन करती है कि प्रमुने सबसे प्रथम उन बामणोको अपने पक्षमें लेनेरा उद्योग किया कि जिनके द्वारा समाजकी प्रगति अरोधक हुई थी। प्रभुके अगीयारो गणधर पहिले क्रियाकांडी ब्रामण थे और प्रभुके उपदेशसे अनुरंजित होकर अपने शिष्य समुदाय सहित वे प्रभुके शरणमें आगये । उसके बाद बहुत समय तक प्रगुद्वारा प्रवर्तित शासन विजयवंत रहा । उन्होने मुक्तिका अधिकार मनुष्य मात्रके लिये वरोवर हकसे स्थापित किया । पुरुषों और स्त्रियोंके लिये सुमर्यादित सुघटित और उत्तम व्यवस्था पुरसर मठोकी स्थापना की और लोगोंमें राग द्वेष स्वच्छन्दसे न हो सके उसके लिये विकट आचार मार्गकी घटनाएं घटित की थी। प्रभुके उपदेश स्वरूपकी मिमांसामें उतरना हमने योग्य नहीं समझा तो भी हमे यह कहना पड़ेगा कि उस समय में उन्होंने दो
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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