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________________ उन्होंने असावधानीसे एक तो बटेश्वर सूरीपुरकी आचार्योंकी पट्टावली और लँबेच समाजकी पट्टावलियोंको इसकी उसमें और उसकी इसमें छपवाकर घसडब्बा कर दिया था। दूसरे सन् सम्वत् भी नहीं दिया उसका मुद्रण समयका इससे पता चल जाता है कि उस समय श्रीमान् रामपाल यती भट्टारक सूरीपुरके बने थे। उस पुस्तकमें भी उनका जिकर है तो भी वह इतिहास अनेक इतिहासझोंको रुचिकर हुआ। अब उसीको लेकर और विशेष सामग्री उपलब्धकर यह दूसरा विस्तरित संस्करण हम पाठकगणोंके समक्ष रख रहे हैं। आशा है कि इसे पढ़कर मुझे आशीर्वाद देंगे। इसमें प्रेरणा और सहायता श्रीमान बाबू सोहनलालजी पोद्दार तथा ताराचन्दजी रपरिया की है वे धन्यवादके पात्र हैं। झम्मनलाल जैन तर्कतीर्थ
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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